अनाद्यानंत आकाश में तैरते
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,
अनादि अनंत से हमारे संवाद के ये सूक्ष्मतर भाव आपने महसूस किये इस रचना में तो रचना को मान मिला है
आपका हार्दिक आभार
सादर.
आदरणीया डॉ० प्राची जी प्रकृति के साथ मन के इस भावपूर्ण रिश्ते की कल्पना ने मन को नयी सोच दे दी है आपको हार्दिक बधाई !
अनुपम रचना आदरणीया मुझे ऐसा लगा किसी नए ग्रह पे हूँ ///प्रणाम सहित हार्दिक बधाई आपको
सम्पूर्ण कविता रूप देकर अपने मन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूति का अक्षर देह ! जय हो !
मन के सूक्ष्मतर भावों को समेटती कविता बहुत अच्छी लगी, आदरणीया।
विजय
एक सुन्दर रचना
आदरणीय राजेश कुमार झा जी
रचना के मूल से जुड़ने और वहाँ ठहरने के लिए आपकी आभारी हूँ.
अनाद्यानंत= अनादि + अनंत ( शायद मैंने सही संधि की है )
स्पर्श और संस्पर्श का अर्थ बहुत सूक्ष्म अंतर ही रखता है.
स्पर्श जहां सतही और सिर्फ दृश्य हो सकता है.. वहीं संस्पर्श बहुत गहन होता है और व्यक्तित्व के हर आयाम को भीतरी तंतु तक स्पर्श कर जाता है.
मैंने यही समझ इन शब्दों को प्रयुक्त किया है..
रचना को मान देने के लिए पुनः आभार
सादर.
प्रिय प्राची जी मानव जीवन का इस बह्मांड से रिश्ता उसके सघन समुच्चय भाव इस प्रस्तुति में परिलक्षित हो रहे हैं मानव मस्तिष्क ,उसका अंतर इन्ही अनादि अनंत की डोर के साथ ही तो बंधे हैं इसके माध्यम से जगत में आप नेह बरसायें यही भाव आपको विशिष्टता की श्रेणी में ला खड़ा करता है ,बहुत- बहुत बधाई सुन्दर रचना हेतु
क्या कहूं कि ये रचना किस-किस जगत से संबंध जोड़ गई, अत्यंत घनीभूत चेतना का यह विस्तार बहुआयामी प्रतीत हुआ, बार-बार पढ़ा और हर बार उसी जगत से मानस जुड़ता रहा । अनाद् यानंत का अर्थ समझ नहीं पाया एवं स्पर्श एवं संस्पर्श के अंतर को उस सूक्ष्मता के साथ नहीं समझ पाया जिस सूक्ष्मता के साथ इनका यहां प्रयोग हुआ है अत: मार्गदर्शन की अपेक्षा है, सादर
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