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मेरे जीवित होने का अर्थ -

-ये नहीं कि मैं जीवन का समर्थन करता हूँ  !

-ये भी नहीं कि यात्रा कहा जाय मृत्यु तक के पलायन को  !

 

ध्रुवीकरण को मानक आचार नही माना जा सकता !

मानवीय कृत्य नहीं है परे हो जाना !

 

मैं तटस्थ होने को परिभाषित करूँगा किसी दिन !

संभव है-

कि मानवों में बचे रह सके कुछ मानवीय गुण !

मेरा अभीष्ट देवत्व नहीं है !

.

.

.

……………………................………… अरुन श्री !

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 788

Comment

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Comment by Arun Sri on July 18, 2013 at 1:58pm

अरुन शर्मा अनंत भाई जी , आपका निःशब्द हो जाना सम्मान है इस रचना का ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on July 18, 2013 at 1:57pm

राज कुमार जिंदल सर , मेरी रचना से कही गुढ़ है आपकी टिप्पणी ! अध्यात्म के आप जैसे मर्मज्ञ का सानिध्य अत्यंत सुखकर है आदरणीय ! सराहने के लिए हार्दिक आभार !

Comment by MAHIMA SHREE on July 17, 2013 at 9:23pm

मैं तटस्थ होने को परिभाषित करूँगा किसी दिन !

संभव है-

कि मानवों में बचे रह सके कुछ मानवीय गुण

मेरा अभीष्ट देवत्व नहीं है !... .. बहुत खूब आदरणीय अरुण जी ... पर तटस्थ होना आसान नहीं है सबसे है कठिन  .. विचारों के गहन तल से उत्पन्न हुयी आपकी कृति को नमन ..और बहुत -२ बधाई

Comment by Arun Sri on July 17, 2013 at 9:11pm

बागी सर , आपका हार्दिक धन्यवाद जो आपने सराहा ! सादर !

Comment by राजेश 'मृदु' on July 17, 2013 at 5:31pm

मैं तटस्थ होने को परिभाषित करूँगा किसी दिन !

मेरा अभीष्ट देवत्व नहीं है !

बहुत ही बढि़या रचना है, सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 17, 2013 at 1:32pm

आदरणीय अरुन श्री भाई जी सच कहूँ तो आपकी इस सुन्दर रचना पर कुछ भी कहने हेतु मेरे पास शब्द नहीं हैं, आपकी रचनाओं में कुछ न कुछ अलग पढ़ने को मिलता है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 8:32pm

रचना में निहित गहन भाव को ग्रहण कर मन मोहित है, अंततः मानव में बचे मानवीय गुण ही स्वयम को और समाज को काम आता है, बधाई इस रचना पर आदरणीय अरुण श्री । 

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