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!!! जमीं-फलक में हैं तारें, निकल के देखते हैं !!!

!!! जमीं-फलक में हैं तारें, निकल के देखते हैं !!!
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लहर-लहर में कशिश है, मचल के देखते हैं।
हवा हवाई सफर से, बहल के देखते है।।

नदी कहे कि सितारें भरी हैं रेत हसीं।
लहर चमक के किनारे उछल के देखते हैं।।

हवा दिशा से कहे कामना सकल शुभ हो।
मगर तुफान कहे तो संभल के देखते हैं।।

ये अग्नि-वारि गगन में, धरा भुलाए नफरत।
प्रलय से कष्ट मिले हैं, संभल के देखते हैं।।

गगन से बरसे है पत्थर, मनुज दबे बहकर।
धरा ओढ़ाए है चादर, सजल के देखते हैं।।

दुआ करें न बने लड़कियां तवायफ वो,
हजार बार सुनीता गजल के देखते हैं।।

ये कल्पना है उड़ाती गगन में गम को।
गगन से पार सभी निकल के देखते हैं।।

ये मांग पर मेरे सिन्दूर किसने डाला यूं।
अमर सुहाग बनी दृग सजल के देखते हैं।।

सुनो कहो कि जमाना मचल न जाय कही।
अभी कुछ और करिश्में गजल के देखते हैं।।

दुआ दवा है कि ‘सत्यम‘ बसर यहां जैसे।
जमीं-फलक में हैं तारें, निकल के देखते हैं।।

कभी-कभी मेरे दिल में सवाल उठता है,
दवा-हकीम नही वो खरल के देखते हैं।।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 19, 2013 at 10:10am

आ0 आशीष सर जी,  आपका स्नेह व सराहना पाकर मेरा प्रयास सार्थक हो गया।  उत्साहवर्धन करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 19, 2013 at 10:09am

आ0 जितेन्द्र भाई जी,  आपका स्नेह व सराहना पाकर मेरा प्रयास सार्थक हो गया।  उत्साहवर्धन करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:31pm

आदरणीय केवल जी जब मिलूंगा तो आपसे यह गजल समझूंगा।

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:21pm

वाह! केवल प्रसाद जी, आपने तो लाजवाब कर दिया है.

सादर

कुंती

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on July 18, 2013 at 10:11am

सुंदर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 8:55am

लहर-लहर में कशिश है, मचल के देखते हैं।
हवा हवाई सफर से, बहल के देखते है।।

नदी कहे कि सितारें भरी हैं रेत हसीं।
लहर चमक के किनारे उछल के देखते हैं।। ....वाह ! बहुत खूब, आदरणीय..केवल जी , सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई...

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