212221222122212
हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?
बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।
यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,
बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।
भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,
फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।
निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,
दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,
मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।
शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,
क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।
याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,
हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीया, ग़ज़ल ने यात्रा कर जो मुक़ाम हासिल किये हैं, वे इसकी प्रासंगिकता को सदा बनाये रखते हैं और ग़ज़ल सदा सामयिक रहती है.
ऐसे प्रयोग होते रहे हैं, हो रहे हैं. इस लिए आपका प्रयास मन को एकदम से भा गया.
इन संदर्भों में कन्हैया लाल नन्दन की तत्सम शब्दावलियों की ग़ज़लें विशेष रूप से उल्लेख्य हैं.
इस ग़ज़ल के लिए पुनः हृदय से बधाई
सादर
आदरणीय मित्रों अजय जी, बृजेश जी, आशीष जी, महिमा जी, शशि जी, आप सबका प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी, मैं गजल को उसके नियमों और व्याकरण के साथ नया रूप और दिशा देना चाहती हूँ। हर तरह के विषय और भावों को इस विधा में बाँधना चाहती हूँ। अगर पाठक पसंद करते हैं तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। आप सबका प्रोत्साहन ही मेरा संबल है। आपका हार्दिक धन्यवाद
सादर
आदरणीया कल्पनाजी, एक विशेष व्यवहार और शैली में हुई इस ग़ज़ल को आपने सनातनी भाव तथा तथ्य दिये हैं.
संदेश और चेतावनी देती इस प्रस्तुति हेतु बधाई
सादर
wah wah wah ,,,,,,,,,,bahut hi khoob gazal kahi hai apne,,,,adarniya ,,,,,,,,,
भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,
फिर तो पीने के लिए, केवल गरल पाएँगे आप।
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,
मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप। वाह ..आदरणीया बहुत ही सुंदर भावों में रची बसी गजल ..बहुत-२ हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया कल्पना दीदी! आपको शत शत नमन!
प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,
मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप। बहुत खूब !!!
शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,
क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप। वाह वाह क्या कहने !!!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीया !
दिली दाद क़ुबूल कीजिये !!!
waah bahut sundar gajal didi hardik badhai aapko .......
यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,
बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।
waah
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online