For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दादाजी को श्रद्धांजली स्वरूप कुछ पंक्तियाँ  

पिता! 

तुम छत थे

ढह गये
तीव्र उम्र तूफान से
दरक गयीं दीवारें
लगाव ख़त्म
आपसदारी 'थी'
'है' नही
न कोई बचाव
धूप से
या बारिश से
शीत से
या गैरों से
न रहा घर
रह गया ढेर
ईंटों का
तुम थे 'एक छत'
हम 'चार दीवारें'
मिटा दिया हमने
अहसास
तुम्हारे होने का
तुम गये, शेष
एक प्रश्न
अवशेष
क्या दीवार के साये में
सुकून होगा
छत के साये सा ?
               - गीतिका 'वेदिका'

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 9:00pm

आदरणीया गीतिका जी, बहुत ही सुंदर भाव//हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 26, 2013 at 8:28pm

प्रिय  गीतिका मैं आपकी मनोस्थिति समझ सकती हूँ पिछले साल ही इस दौर से गुजरी हूँ पिता हो या माता  वो हमारे सरों की छत ही होते हैं छत के बिना सुकून कहाँ ?? अपने व्यथित हृदय से निकले शब्दों भावों में पिरोई रचना अप्रतिम श्रद्धांजली है आपके पिता के लिए वो पास ना होते हुए भी ये सब देख पढ़ रहे होंगे शुभ कामनाएं बस इससे अधिक कुछ नहीं लिख पाऊँगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 26, 2013 at 8:23pm

आदरणीया मीना पाठक जी ये रचना गीतिका जी की है आपने गलती वश नाम गलत लिख दिया 

Comment by Meena Pathak on July 26, 2013 at 7:51pm

आदरणीया कुंती जी आप की रचना कई बार पढ़ी फिर भी कुछ लिख नही पा रही हूँ .. आँखे नम हों गई, बधाई 
सादर 

Comment by annapurna bajpai on July 26, 2013 at 12:18pm

आदरणीया गीतिका जी बड़ी सुंदरता से पिरोये गए भावों से पिता को श्र्द्धा सुमन देती  आपकी रचना के लिए आपको बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 26, 2013 at 11:54am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.....................
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 26, 2013 at 10:02am

आदरणीया गीतिका जी,

 बच्चो के सिर पर ,पितारूपी छत के होते, न होने की बहुत ही सहजता से अनुभूति की अभिव्यक्ति है, आपकी रचना में..!

//क्या दीवार के साये में 
सुकून होगा 
छत के साये सा ?//

बिल्कुल सच पूछा आपने ,जो छत के तले सुकून व् निश्चिन्ता होती है , वो दीवारों के सहारे नही है ! अपितु दीवारों के तो साये, ही नही होते! और बिना छत के तो दीवारे अलग अलग होती है, छत ही उनको जोड़कर व् सुरक्षित रखती है ,  नही तो दीवारे ढह जाती हैं!

भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 26, 2013 at 9:38am

अपने को खो देने पर ख़ास कर पिता जिसका साया संबल प्रदान करता रहता है, कुछ दिन तक मन में प्रश्न उठते रहते है 

ऐसी ही अन्बुती करते सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई गीतिका "वेदिका" जी 

Comment by MAHIMA SHREE on July 25, 2013 at 11:36pm

आदरणीया गीतिका जी .. बहुत ही सुंदर भाव अभिव्यक्ति .. बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service