पावस का इस बार भूमि पर
प्यार बहुत उमड़ा है।
लेकिन क्या सुख संचय होगा?
संशय नाग
खड़ा है।
मक्कारी, गद्दारी, लालच,
शासन के कलपुर्ज़े।
बूँद-बूँद को चट कर देंगे,
घन बरसे या गरजे।
भरे सकल जल-स्रोत लबालब,
सागर ज्वार चढ़ा है।
मगर उसे नल नहलाएगा?
चिंतित मलिन
घड़ा है।
बन मशीन मानव ने भू के,
रोम-रोम को वेधा।
क्यों कुदरत फिर क्षुब्ध न होगी,
रुष्ट न होंगे मेघा!
अमृत वर्षा से खेतों का,
कण-कण जाग पड़ा है।
पर किसान का उत्सव होगा?
उत्तर यहीं
अड़ा है।
मौलिक व अप्रकाशित
----कल्पना रामानी
Comment
आदरेया
अति सुन्दर नवगीत
हार्दिक बधाई स्वीकार करें .
आ0 कल्पना रामानी जी, वाह! अद्भुत, अतिसुन्दर मन को झकझोरती समसामयिक नवगीत। हृदयतल से बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ................ |
"पावस का इस बार भूमि पर
प्यार बहुत उमड़ा है।
लेकिन क्या सुख संचय होगा?
संशय नाग
खड़ा है।".................................
आदरणीया कल्पना जी , नवगीत रचना में यह पंक्ति बहुत खूब सूरत है।
पर किसान का उत्सव होगा?
उत्तर यहीं
अड़ा है।
नव्यता को पहचान देता हुआ अद्भुत नवगीत है ...
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