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तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब भी सोया अकेली रातों में

डूबता रहा  तुम्हारी बातों में 

कभी थे हाथ, तेरे हाथों  में 

हाँ! तुम  ही तुम महकती थीं 

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब होती थीं तुम तन्हाई में 

विरह की सम्वेदित अंगड़ाई में 

भावों की असीम गहराई में 

साध चुप्पी, तुम बिलखती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

मुझे याद है वे सारे पल 

वह परसों, आज और कल

जब टूटा था तेरा सम्बल

तुम भरे गले से  हिलकती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

तेरे मतवाले नशीले नयन 

घायल करते थे मेरा मन 

बाँहों में तेरी, जो अपनापन

जुल्फें रोज ही उलझती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब प्रेम पर पहरेदारी हुई 

दिल में चुभी ज्यों गर्म सुई

धीमी जलती धडकन की रुई

तुम  भी तो उधर सुलगती थीं 

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

           

 -जितेन्द्र 'गीत' 

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 4:18pm

खूब खूब सुन्दर....सावन सी खनकती हुयी रचना ..बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on August 9, 2013 at 12:17pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by Abhinav Arun on August 9, 2013 at 6:36am

अच्छे भाव ... दिल की मधुरता  निखर कर आई है !1

Comment by annapurna bajpai on August 8, 2013 at 11:19pm

आदरणीय जितेंद्र जी बड़ी सुंदरता से भावों का प्रस्फुटन हुआ है , उसके लिए आपको बधाई ।

Comment by shubhra sharma on August 8, 2013 at 10:41pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी बहुत ही खूबसूरत आपकी रचना के लिए बधाई 

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब भी सोया अकेली रातों में

डूबता रहा  तुम्हारी बातों में 

कभी थे हाथ, तेरे हाथों  में 

हाँ! तुम  ही तुम महकती थीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 8, 2013 at 10:24pm

अच्छी रचना है जितेंद्र जी बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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