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!!! हरिगीतिका !!!


2+3+4+3+4+3+4+5= 28
चौकल में जगण-121 अतिनिषिध्द है। चरण के अन्त में रगण-212 कर्ण प्रिय होता है।

जब मेघ बरसे रात तड़फे पीर है मन वेदना।
तन तीर धसती घाव करती राह निश-दिन देखना।।
अब आव प्रियतम भोर होती भ्रमर तन-मन छेदता।
रति-सुमन हॅसकर हास करती सुर्ख सूरज देवता।।1

चिडि़यां चहक कर तान कसती बांग मुर्गा टीसते।
बन-बाग-उपवन खूब झूमें मोर-दादुर रीझते।।
घर नीम छाया धूप माया उमस करती ताड़ना।
नय नीर छलके भाव बहके घाट-नदिया बांध ना।।2

कहुं प्रेम पाती जान खाती रोज आंखें लाल सी।
रतनार न्यारी सांझ प्यारी कोर काजल काल सी।।
यह चांद-तारे आग धारे चांदनी बस घूरती।
संकल्प-यादें सूक्ति-बातें राजदारी पूछती।।3

अब शोक हिचकी रूदन सिसकी आंसुओं की धार है।
चहुं ओर देखो ताल-नदिया लहर सागर मार है।।
जब आंख खुलती आस बॅधती गाय बछड़ा चाटती।
खा घास-चोकर दूध देकर प्रेम-समता बांटती।।4

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 14, 2013 at 8:45pm

आ0 सौरभ सर जी,  आपके स्नेह और उत्सुक्ता के प्रति मैं श्रध्दानत हूं। भला मैं आपको क्या दे सकता हूं? मैनें तो आपसे सदैव लिया ही है। ऐसा व्यवहार मैने छन्द प्रभाकर पुस्तक में ही पढ़ी है।  सादर

2+3+4+3+4+3+4+5= 28 ........ इसका अर्थ क्या हुआ भाई केवल प्रसाद जी ? कृपया स्पष्ट करें.---//आ0 सर जी, इसको वर्णिक छन्द के आधार पर लिया गया है।//यह केवल सहजता के लिए अपनाया गया होगा...? जैसा कि मैने पढ़ा है।//
हरिगीतिका के संदर्भ में इतनी ही बात ध्यान पर रखें कि इसके पदों की पाँचवीं, बारहवीं, उन्नीसवीं और छब्बिसवीं मात्रा लघु होनी है तथा पदान्त रगण (ऽ।ऽ) हो तो अति उत्त्म अन्यथा लघु लघु गुरु यनि सगण (।।ऽ) भी चलता है, निर्भर करता है कि द्विकल या चौकल कैसा व्यवहार कर रहे हैं.----//प्रस्तुत छंद में 5,12,19 और 26वीं मात्रा लघु ही हैं।//
मूर्गे की बाँग को टीस की तरह कब सुने हैं भाई ? --//विरही मन को वह सारे सुखद बिम्ब दर्द भरे ही लगते या अनुभव करती है।      व ास्तविकता भी हो सकती है...जो व्यक्ति देर रात में सोता है और उसे प्रातः काल में कोई व्यवधान करता है तो बुरा ही लगता है।//
वैसे आपने त्रिभंगी या चवपैया छंदो की तरह पदों के शब्द संयोजन में तुक साधने की कोशिश की है. इससे गेयता बढ़ी ही है.-----//मेरे मस्तिष्क में ...श्रीराम चंद्र कृपाल भजमन......। ही चल रहा था।//

 सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 2:27pm

2+3+4+3+4+3+4+5= 28 ........  इसका अर्थ क्या हुआ भाई केवल प्रसाद जी ?  कृपया स्पष्ट करें.

हरिगीतिका के संदर्भ में इतनी ही बात ध्यान पर रखें कि इसके पदों की पाँचवीं, बारहवीं, उन्नीसवीं और छब्बिसवीं मात्रा लघु होनी है तथा पदान्त रगण  (ऽ।ऽ) हो तो अति उत्त्म अन्यथा लघु लघु गुरु  यनि सगण (।।ऽ) भी चलता है, निर्भर करता है कि द्विकल या चौकल कैसा व्यवहार कर रहे हैं.

मूर्गे की बाँग को टीस की तरह कब सुने हैं भाई ? 

वैसे आपने त्रिभंगी या चवपैया छंदो की तरह पदों के शब्द संयोजन में तुक साधने की कोशिश की है. इससे गेयता बढ़ी ही है.

सधन्यवाद

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2013 at 9:09pm

आ0 विजय निकोर सर जी,  आपका स्नेह और आशीष पाकर मेरी छंद रचना सार्थक हुई। आपके स्नेहाशीष के लिए आपका हृदयतल से बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by vijay nikore on August 12, 2013 at 7:32am

अति सुन्दर, आदरणीय केवल प्रसाद जी।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2013 at 3:27pm

आ0 अरून अनन्त भाई जी,  आपका स्नेह और प्रोत्साहन से रचना कर्म को संतुष्टि मिली।  आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार।  सादर, 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 3:09pm

आदरणीय केवल भाई जी वाह बेहद सुन्दर हरिगीतिका क्या कहने हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 10, 2013 at 10:11pm

आ0 अन्नपूर्णा जी,     सादर प्रणाम!   आपके स्नेह और आशीष वचन के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया व हार्दिक आभार। सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 10, 2013 at 7:07pm

अब शोक हिचकी रूदन सिसकी आंसुओं की धार है।
चहुं ओर देखो ताल-नदिया लहर सागर मार है।।
जब आंख खुलती आस बॅधती गाय बछड़ा चाटती।
खा घास-चोकर दूध देकर प्रेम-समता बांटती।।4................................ये पंक्तियाँ मुझे बेहद अच्छी लगी आ० केवल भाई जी कितना सुंदर वर्णन किया है आपने । खा घास चोकर दूध देकर गाय प्रेम समता बांटती । गाय कभी कोई विषमता नहीं करती वो तो हम इंसान ही ऐसे है जो हर जगह सम और विषम भाव रखते है । बहुत बधाई आपको इस सुंदर रचना कर्म के लिए ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 10, 2013 at 2:51pm

आ0 भण्डारी जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 10, 2013 at 2:50pm

आ0 शेखर भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से आभार।  सादर,

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