!!! गीत !!!
तुम राष्ट् के कर्णधार देवदूत हो,
यदि शांति का, मार्ग दर्शन कर सकोगे?
नित नये नूतन किसलय अरूणिमा में,
या सांझ की श्याम धुन बांसुरिया हो।
धूप भी चन्दन लगेगा दोपहरिया में,
राष्ट् को यदि कीर्ति गौरव दे सकोगे? 1
तुम मनुष्य हो कर्म का फल भूल जाओ,
देश-धर्म हित लड़ो स्व भूल जाओ।
प्यार की पवि़त्र गंगा हर कहीं हो,
राष्ट् को यदि एक भगीरथ दे सकोगे? 2
सत्यम आहिंसा प्रेमु धन खूब लुटाओ,
राजपथ का मार्ग भी अवरूध्द हो जाये।
ज्ञान की वर्षा से जन शिक्षित हो जाये,
राष्ट् को यदि एक गांधी दे सकोगे? 3
देश हो गुलशन बहारें महका देंगी,
देश के कृषक और जवान झूम उठेंगे।
अन्न का अम्बार-त्यौहार जगमगाये,
राष्ट् को यदि लाल-जवाहर दे सकोगे? 4
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 प्राची मैम जी, आपके स्नेह और सुविचारों से लेखनी को बल मिला है। आपका हृदयतल से आभार। सादर,
बहुत सुन्दर स्पष्ट विचारों को शब्द दिए हैं आपने इस गीत में आ० केवल प्रसाद जी
बस शिल्प निर्वहन में कुछ कमी रह गयी जो सतत प्रयास से ही सधती जायेगी
बहुत बहुत शुभकामनाएँ
आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम! आपका आशीष पाकर मैं धन्य हो गया। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदयतल आभारी हूं। सादर,
एक अरसे बाद आपसे कोई गीत सुन रहा हूँ, भाई केवल प्रसाद जी. बधाई स्वीकारिये.
रचना का विधान अपनी जगह.. उसका निर्वहन तो होता रहेगा.
गीत अपने उद्येश्य में सफल है.
बार बार बधाई.. .
शुभेच्छाएँ
आ0 विजय सर जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदय तल से आभारी हूं। सादर,
आ0 बसंत भाई जी, सादर प्रणाम! आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदय तल से आभारी हूं। सादर,
आ0 कल्पना रामानी दी जी, सादर प्रणाम! आपकी टिप्पणी मेरे लिए बेशकीमती है। आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदय तल से आभारी हूं। सादर,
आ0 भण्डारी भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदय तल से आभारी हूं। सादर
बहुत सुन्दर देश प्रेम से ओतप्रोत रचना बधाई आ0 सत्यम जी
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