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ग़ज़ल : थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

बह्र : मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन

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न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ

थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

 

है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर

मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ

 

यकीनन संगदिल भी काट दूँगा

तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ

 

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?

मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ

 

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:13pm

बहुत बहुत धन्यवाद Rajesh Kumar Jha जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:13pm

बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:11pm

बहुत बहुत शुक्रिया पियुष द्विवेदी 'भारत' जी

Comment by वेदिका on August 19, 2013 at 7:11pm

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ ,,, वाह क्या कहने ...जानदार शेअर के!

बढ़िया गजल

बधाई !!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:08pm

बहुत बहुत धन्यवाद Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:07pm

वीनस जी, सचमुच ऐसा हुआ है या मजाक कर रहे हैं। :)))))

बहुत बहुत धन्यवाद। स्नेह बनाये रखें

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:06pm

बहुत बहुत धन्यवाद  विवेक मिश्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया जितेन्द्र 'गीत' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2013 at 7:05pm

बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी

Comment by राजेश 'मृदु' on August 19, 2013 at 6:00pm

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

इन पंक्तियों ने तो सबकुछ लूट लिया । बहुत अच्‍छी गज़ल कही है आपने, सादर

कृपया ध्यान दे...

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