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ग़ज़ल : थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

बह्र : मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन

--------------------

न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ

थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

 

है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर

मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ

 

यकीनन संगदिल भी काट दूँगा

तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ

 

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?

मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ

 

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 18, 2013 at 3:04pm

बहुत बहुत शुक्रिया Neeraj Mishra जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 18, 2013 at 1:08pm

वाह बेहतरीन ग़ज़ल धर्मेन्द्र जी दाद क़ुबूल करें

Comment by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 11:44am

''है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर

मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ

 

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?

मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ

 

हवा भरना तुम्हारा बेअसर है

मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ

 

मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ''

-बड़े खूबसूरत अशआर जनाब धर्मेन्द्र जी. बधाई हो. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 18, 2013 at 10:48am

धर्मेन्द्र भाई , बेमिसाल , लाजवाब  गज़ल कही ! इन अशआर के लिये दाद कुबूल कीजिये 

न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ

थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में

मैं इक झरना हूँ फव्वारा नहीं हूँ

 

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ ------------  वाह वाह !!

Comment by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 10:12am
मेरी हर बात को अंतिम न मानो

मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ

कभी मुझमें उतरकर देख लेना

समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ

ulti mate baat







जितनी तारीफ की जाये कम ही रहेगी ।
ये ग़ज़ल इतनी खूबसूरत हरदम ही रहेगी ।

बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी ।

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