For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहचान

 

                     

हटा कर धूल जब देखा अतीत के  आईने ने हमको,

उसने भी न पहचाना और अनजान-सा देखा हमको,

सालों बाद हमसे पूछे बहुत सवाल पर सवाल उसने,

हर सवाल के जवाब में हमने नाम तुम्हारा था दिया।

                      

ऐसा रहा तस्सवुर तुम्हारा इस सूनी ज़िन्दगी पर मेरी,

नींद आए  तो  देखे  यह  हर  धुँधले  ख़वाब  में  तुमको,

न  आए  नींद तो अँधेरे में यह  अंधे  की टूटी लकड़ी-सी,

ढूँढती है यूँ .. यहाँ, वहाँ, हर मोड़, हर चौराहे पर तुमको।

 

पूछे जो आईना तुमसे तो तुम भी कह देना झूठ उससे,

वह भूल थी तुम्हारी कि हाँ तुमने कभी चाहा था हमको,

वरना ज़िन्द्गी की इन वीरान-सुनसान-तंग गलियों में

इश्क के दर्द से तुम्हारी भी तो कभी कोई पहचान न थी।

   

--------                                                                                                                                                                                           

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 21, 2013 at 6:41am

आदरणीय सुलभ जी:

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

सादर,

वि्जय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:47pm

आदरणीय विजय निकोर जी,बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 1:52pm

आदरणीय रविकर जी:

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:40am

आदरणीय गिरिराज जी:

कविता की सराहना के लिए आपका आभार शत-शत।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:34am

आदरणीय केवल प्रसाद जी:

आपके उत्साह वर्धन से ्यह रचना सार्थकता को
प्राप्त हुई।
आपका हार्दिक धन्यवाद।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:30am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी:

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on August 20, 2013 at 11:26am

आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक और प्रेरक है मेरे लिए।

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अरून जी।

सादर,

विजय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 19, 2013 at 9:37pm

आदरणीय विजय निकोर जी , सुंदर रचना प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 7:51pm

मन में गहरे तक बसे भाव बिना किसी बनावट के अभिव्यक्त हुए हैं 

शुभकामनाएँ आ० विजय जी 

सादर 

Comment by विजय मिश्र on August 19, 2013 at 5:13pm
विजयजी ,भावनाएँ भी कभी-कभी कितने गहरे गोते खिलाती है ! बहुत ही गमगीन मुद्रा है इसकी . आपकी और कविताओं की तरह इसे पढकर चहक नही पाया ,उल्टा सोचने लगा .अपने ढंग की इस अनूठी कविता के लिए अक्षुण्ण शुभकामना .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service