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लघुकथा : सांप्रदायिक (गणेश जी बागी)

त्रिपाठी जी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी के नेता हैं । सुबह-सुबह अख़बार के साहित्यिक कालम मे प्रकाशित एक कहानी को पढ़ कर भड़के हुए थे । लेखक ने कहानी में एक मक्कार पात्र का नाम अल्पसंख्यक समुदाय से लिया था । बस नेता जी को उस कहानी मे सांप्रदायिकता की बू आने लगी | उन्होंने फ़ोन कर आनन-फानन में अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगो को बुला लिया । लेखक का पुतला आदि जलाकर विरोध प्रकट करने की बात तय हो गयी | 

घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना दी, "मालिक मालिक, कुछ लोग आप से मिलने आए हैं "  
"तुम उन लोगो को बरामदे मे बिठाओ, शरबत-पानी पिलाओ, मैं तैयार होकर आता हूँ "
नेता जी तैयार होकर निकलने ही वाले थे कि उनकी नज़र छोटू पर पड़ी, "अरे.. ये स्टील के गिलासों में क्या लेकर जा रहा है, रे.. ! " 
"मालिक शरबत है, आपने ही कहा था न !" 
"पगलाया है का..? " नेता जी उसपर गरजे, "शरबत स्टील के गिलासों मे क्यों लेकर जा रहा है ? दिखता नहीं, वो लोग दूसरे धर्म के हैं ?.. वहाँ आलमारी में शीशे के गिलास पड़ें होंगे, ले जा उस में.. . "

  • समाप्त 
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघु कथा : रमजान
 

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 30, 2013 at 8:50am

आदरणीय रविकर जी, आपसे सराहना पाना अच्छा लगता है, स्नेह बना रहे, आभार व्यक्त करता हूँ । 

Comment by vandana on August 29, 2013 at 7:45am

राजनीति में दोगलेपन पर सटीक व्यंग्य किया है आपने 

Comment by bodhisatva kastooriya on August 26, 2013 at 11:46pm

आदरणीय गणेश जी  बहुत ही सटीक व्यंग 

Comment by Ajitsinh Jagirdar on August 26, 2013 at 10:50am

दोगले राजकीय नेताओं की सच्चाई को उजागर करती चोट्दार लघुकथा ....प्रासंगिक....सदैव.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2013 at 10:55pm

ऊपर से सेक्युलर अन्दर से कुछ और वाह रे वाह इन डूएल करेक्टर वालों पर तीखा प्रहार करती लघु कथा ,बहुत बढ़िया हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी 

Comment by Neeraj Neer on August 25, 2013 at 8:53pm

कथा लघु पर भाव गंभीर, यही तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेताओं की असलियत है , अपनी लघु कथा के माध्यम से उनके वास्तविक चरित्र को उजागर करने के लिए बहुत बहुत अभिनन्दन . लेकिन ये सब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं , बस आगे २० से २५ साल और फिर सबकी कहानी ख़तम , फिर ये न कोई आन्दोलन करने की स्थिति में रहेंगे और न शरबत पानी पिलाने की स्थिति में . 

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 3:45pm

      आदरणीय गणेश् बागी जी बहुत् ही यथार्थवादी सुन्देर कथा . गागर मे सागर भर दिया आपने . मेरा सौभाग्य आपके सौजन्य से सुन्दर यथार्थ का अवलोकन कर सकी .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2013 at 11:46pm

इस कथा का जन्म होना ही था. इसका जन्म लेना ओबीओ के एक संयत मंच के रूप में सामने आने और ससंदर्भ होने की उद्घोषणा है.

इस अति संवेदनशील तथ्य को इतनी गहराई और संयत ढंग से निभा ले जाने पर,भाई गणेश जी, आपको बार-बार बधाई दे रहा हूँ.

आपकी अबतक की सबसे सफल लघुकथाओं में से एक यह लघुकथा बहुत दिनों तक साहित्य के आंगन में उदाहरण सदृश होगी.

शुभ-शुभ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2013 at 11:06pm

भाई सिज्जू जी, आपकी टिप्पणी आगे और लिखने हेतु प्रेरित करती है, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार,मन मुग्ध है, सहयोग बना रहे । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2013 at 11:03pm

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी, लघुकथा की आत्मा तक पहुँच कर आपने प्रतिक्रिया व्यक्त किया है, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार । 

कृपया ध्यान दे...

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