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छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।
गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।
कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,
सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।
बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,
गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।
विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,
जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।
विनय यही हों दृढ़ जीवन में, ये सदैव रिश्ते नाते,
रहे चमकता सतरंगी, संसार रेशमी डोरी में।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीया कल्पना रामाने जी
भाई बहन के अटूट स्नेहमय बंधन को प्रगाढ़ करती रेशम की डोर.. पर बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है
अशआर हृदय स्पर्शी हैं ..
मान आनंदित हो गया इस ताजगी भरी सुन्दर गज़ल पर
सादर बधाई स्वीकारें
नाम से तो शिज्जु जी, मैं कोई परिभाषा नहीं जानती, क्योंकि उर्दू शब्द मेरी पकड़ में बिलकुल नहीं आते। एक बार स्पष्ट बता दिया जाए तो समझ में आ जाता है।
सादर
मेरे दिमाग़ में ग़ज़ल के जिस दोष के कारण उथल पुथल मची है ऐसा लग रहा है की आपकी इस रचना में परिलक्षित हो रहा है वो दोष है ऐब ए तनाफुर
//छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में
गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में//
मैं बार बार ये सोचता हूँ इस तरह लिखने को दोष क्यूँ कहा जाता है जबकि कई उस्ताद शुअरा की रचना में देखने को मिलता है मसलन जनाब बशीर बद्र साहब का ये शेर देखिए
//आग की दस्तार बाँधी, फूल की बारिेश हुई
धूप पर्वत,शाम झरना,दोनों अपने साथ है//
जनाब अमीर कज़लबाश् साहब के ये अशआर देखिये देखिए
//जिस सहर का इंतज़ार है तुझे
रात भर जाग और सपना देख//
//तअल्लुक है उसी बस्ती से मेरा
हमेशा से मगर बच कर रहा हूँ//
गुरुजनो से मार्गदर्शन की अपेक्षा है,
अभिनव अरुण जी, आपको भी इस पावन पर्व की शुभकामनाएँ...
प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
आदरणीय शिज्जु जी, गुरुजनों को आने दीजिये, मैं स्वयं टिप्पणी के इंतज़ार में हूँ।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार
आदरणीया कल्पना मैडम आपकी हर रचना एक नयापन लिए होती है बल्कि मैं यह कहूँगा आपकी रचना पे कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने के समान है, अपनी इस बेहतरीन रचना के लिए दाद क़ुबूल करें.
जहाँ तक मेरे ज्ञान की बात है मैं ग़ज़ल की कक्षा का बिल्कुल ही नया विद्यार्थी हूँ इसलिए जो मन में आया वो नही लिख सकता लेकिन मेरे मन में भी वही सवाल आया था जो आदरणीय अरुण शर्मा जी के मन में आया है मेरी भी वही समस्या है जो अरुण जी की है.
भाई बहन के स्नेह बंधन को समर्पित इस ग़ज़ल ने अभिभूत कर दिहे आदरणीया कल्पना जी ..क्या कहने ..बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है -
बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,
गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।
हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल और पवन पर्व के अवसर पर !!
आदरणीय मित्रो, सुलभ जी, राम शिरोमणि जी, गीतिकाजी, विजयजी, अरुण जी, श्याम नरेन जी, श्याम जुनेजा जी, आप सबका रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
वाह वाह वाह आदरणीया कल्पना रमानी जी इस पावन पर्व क्या सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने आनदं आ गया. इस हेतु दिल से बधाई स्वीकारें. कृपया अन्यथा मत लीजियेगा आदरणीया क्या यह कोई बहर है कई बार मैं भी कई ऐसी पंक्तियाँ लिख देता हूँ फिर बहर में उलझ जाता हूँ तो उनका दम निकल जाता है यूँ ही पड़ी रहती हैं.
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