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//गज़ल// सार रेशमी डोरी में- कल्पना रामानी

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छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।

गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।

 

कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,

सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।

 

बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,

गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।

 

विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,

जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।

 

विनय यही हों दृढ़ जीवन में, ये सदैव रिश्ते नाते,

रहे चमकता सतरंगी, संसार रेशमी डोरी में।  

 

 मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 20, 2013 at 9:13pm

आदरणीया कल्पना रामाने जी 

भाई बहन के अटूट स्नेहमय बंधन को प्रगाढ़ करती  रेशम की डोर.. पर बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है 

अशआर हृदय स्पर्शी हैं ..

मान आनंदित हो गया इस ताजगी भरी सुन्दर गज़ल पर 

सादर बधाई स्वीकारें 

Comment by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 7:51pm

नाम से तो शिज्जु जी, मैं कोई परिभाषा नहीं जानती, क्योंकि उर्दू शब्द मेरी पकड़ में बिलकुल नहीं आते।  एक बार स्पष्ट बता दिया जाए तो समझ में आ जाता है।

सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 20, 2013 at 7:46pm

मेरे दिमाग़ में ग़ज़ल के जिस दोष के कारण उथल पुथल मची है ऐसा लग रहा है की आपकी इस रचना में परिलक्षित हो रहा है वो दोष है ऐब  ए तनाफुर

//छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सा रेशमी डोरी में

गुंथा हुआ भाई बहना का, प्या रेशमी डोरी में//

मैं बार बार ये सोचता हूँ इस तरह लिखने को दोष क्यूँ कहा जाता है जबकि कई उस्ताद शुअरा की रचना में देखने को मिलता है मसलन जनाब बशीर बद्र साहब का ये शेर देखिए 

//आग की दस्तार बाँधी, फूल की बारिेश हुई

धूप पर्वत,शाम झरना,दोनों अपने साथ है//

जनाब अमीर कज़लबाश् साहब के ये अशआर देखिये देखिए

//जिस सहर का इंतज़ार है तुझे

   रात भर जाग और सपना देख//

//तअल्लुक है उसी बस्ती से मेरा

हमेशा से मगर बच कर रहा हूँ//

गुरुजनो से मार्गदर्शन की अपेक्षा है, 

Comment by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 7:27pm

अभिनव अरुण जी, आपको भी इस पावन पर्व की शुभकामनाएँ...

प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

सादर

Comment by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 7:26pm

आदरणीय शिज्जु जी, गुरुजनों को आने दीजिये, मैं स्वयं टिप्पणी के इंतज़ार में हूँ।

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 20, 2013 at 7:23pm

आदरणीया कल्पना मैडम आपकी हर रचना एक नयापन लिए होती है बल्कि मैं यह कहूँगा आपकी रचना पे कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने के समान है, अपनी इस बेहतरीन रचना के लिए दाद क़ुबूल करें.
जहाँ तक मेरे ज्ञान की बात है मैं ग़ज़ल की कक्षा का बिल्कुल ही नया विद्यार्थी हूँ इसलिए जो मन में आया वो नही लिख सकता लेकिन मेरे मन में भी वही सवाल आया था जो आदरणीय अरुण शर्मा जी के मन में आया है मेरी भी वही समस्या है जो अरुण जी की है.

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 6:19pm

भाई बहन के स्नेह बंधन को समर्पित इस ग़ज़ल ने अभिभूत कर दिहे आदरणीया कल्पना जी ..क्या कहने ..बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है -

बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,

गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।

हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल और पवन पर्व के अवसर पर !!

Comment by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 5:33pm

आदरणीय मित्रो, सुलभ जी, राम शिरोमणि जी, गीतिकाजी,  विजयजी,  अरुण जी,  श्याम नरेन जी, श्याम जुनेजा जी, आप सबका रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Shyam Narain Verma on August 20, 2013 at 3:25pm
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 20, 2013 at 2:56pm

वाह वाह वाह आदरणीया कल्पना रमानी जी इस पावन पर्व क्या सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने आनदं आ गया. इस हेतु दिल से बधाई स्वीकारें.  कृपया अन्यथा मत लीजियेगा आदरणीया क्या यह कोई बहर है कई बार मैं भी कई ऐसी पंक्तियाँ लिख देता हूँ फिर बहर में उलझ जाता हूँ तो उनका दम निकल जाता है यूँ ही पड़ी रहती हैं.

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