For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कहकहों के दायरे में ..{अभिनव अरुण}

ग़ज़ल - 

कहकहों के दायरे में दिल मेरा वीरान है ,

गाँव के बाहर बहुत खामोश एक सीवान है |

 

उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,

मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |

 

वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,

आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |

 

छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,

ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |

 

बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,

हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है |

 

हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,

और   इच्छाएं लिए   घुटता हुआ   इंसान है |

                             - अभिनव अरुण 

                               {19082013}

*सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 778

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on August 21, 2013 at 7:04pm

खूबसूरत ख्यालों से भरपूर आम आदमी के ख्याल शामिल की हुयी गजल  पर बधाई !!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on August 21, 2013 at 6:56pm

बढ़िया  गज़ल, आदरणीय अभिनव जी ! बहुत बहुत बधाई !

हाँ, एक और बात कि जहाँ तक मै समझ पा रहा हूं अंतिम शेर के मिसरा-ए-ऊला में बहर थोड़ी बिगड़ रही है ! ये शायद गलती से, ध्यान न जाने के कारण हो गया है ! देखें..

हाट ए सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर....यहां २१२१ का क्रम हो रहा है ! एकबार दृष्टिपात करें और मुझे भी बताएं कि क्या मै सही हूं ?

Comment by Abhinav Arun on August 21, 2013 at 2:48pm

आदरणीया राजेश जी आपका आशीष मिला हार्दिक आभार आपका . श्री अरुण जी , श्री नीरज जी आप सदृश पारखियों को अश'आर भा गए मन उत्फुल्ल्लित है . हार्दिक रूप से धन्यवाद टिप्पणी के लिए .

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 21, 2013 at 1:08pm

बेहतरीन लाजवाब ग़ज़ल आदरणीय भाई जी सभी के सभी अशआर भा गए दिल से बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 21, 2013 at 11:47am

उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,

मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |

 बेहतरीन लाजबाब अशआर वाह इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें |

Comment by Neeraj Nishchal on August 21, 2013 at 11:38am

वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,

आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |

छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,

ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |

बहुत ही ज्यादा आदरणीय अरुण भाई

Comment by Abhinav Arun on August 21, 2013 at 7:11am

आ. जितेन्द्र जी बहुत आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 3:17am

वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,

आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |.........वाह! बड़ी मासूमियत लिया हुआ शेर

सुंदर भावों से सुसज्जित गजल पर, दिली दाद कुबुलिये आदरणीय अभिनव अरुण जी

Comment by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 7:48pm

मेरी सीधी सादी ग़ज़ल ने आपका स्नेह पाया ..आभार आदरणीय शिज्जू जी बहुत बुत आशीष मिलता रहे कला फलती फूलती रहे !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 20, 2013 at 7:13pm

एक सीधे साधे आम इंसान की सोच आपकी इस ग़ज़ल में उभर के आई है, इस सशक्त रचना के लिये बधाई कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service