ग़ज़ल -
कहकहों के दायरे में दिल मेरा वीरान है ,
गाँव के बाहर बहुत खामोश एक सीवान है |
उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,
मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |
वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,
आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |
छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,
ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |
बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,
हाशिये पर गाँव का दुबका हुआ अरमान है |
हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर ,
और इच्छाएं लिए घुटता हुआ इंसान है |
- अभिनव अरुण
{19082013}
*सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित
Comment
खूबसूरत ख्यालों से भरपूर आम आदमी के ख्याल शामिल की हुयी गजल पर बधाई !!
बढ़िया गज़ल, आदरणीय अभिनव जी ! बहुत बहुत बधाई !
हाँ, एक और बात कि जहाँ तक मै समझ पा रहा हूं अंतिम शेर के मिसरा-ए-ऊला में बहर थोड़ी बिगड़ रही है ! ये शायद गलती से, ध्यान न जाने के कारण हो गया है ! देखें..
हाट एक सजती है पगडण्डी के दोनों छोर पर....यहां २१२१ का क्रम हो रहा है ! एकबार दृष्टिपात करें और मुझे भी बताएं कि क्या मै सही हूं ?
आदरणीया राजेश जी आपका आशीष मिला हार्दिक आभार आपका . श्री अरुण जी , श्री नीरज जी आप सदृश पारखियों को अश'आर भा गए मन उत्फुल्ल्लित है . हार्दिक रूप से धन्यवाद टिप्पणी के लिए .
बेहतरीन लाजवाब ग़ज़ल आदरणीय भाई जी सभी के सभी अशआर भा गए दिल से बधाई स्वीकारें.
उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,
मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |
बेहतरीन लाजबाब अशआर वाह इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें |
वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,
आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |
छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,
ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |
बहुत ही ज्यादा आदरणीय अरुण भाई
आ. जितेन्द्र जी बहुत आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ !
वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,
आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |.........वाह! बड़ी मासूमियत लिया हुआ शेर
सुंदर भावों से सुसज्जित गजल पर, दिली दाद कुबुलिये आदरणीय अभिनव अरुण जी
मेरी सीधी सादी ग़ज़ल ने आपका स्नेह पाया ..आभार आदरणीय शिज्जू जी बहुत बुत आशीष मिलता रहे कला फलती फूलती रहे !!
एक सीधे साधे आम इंसान की सोच आपकी इस ग़ज़ल में उभर के आई है, इस सशक्त रचना के लिये बधाई कुबूल करें
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