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मेरे पागल दिल से पूछो [नज़्म]

तुमसे बिछड़ के क्यों जीता हूँ ,
मेरे पागल दिल से पूछो ।
दर्द के आंसू क्यों पीता हूँ ,
मेरे पागल दिल से पूछो ।

तनहाई के दौर बहुत हैं ।

दर्द मिले इस तौर बहुत हैं ।
ये न समझना एक तुम्ही हो,
दिल के साथी और बहुत हैं ।

टूटे सपने क्यों सींता हूँ ,
मेरे पागल दिल से पूछो ।

माना तुमसे दूर बहुत हैं ।
हम दिल से मजबूर बहुत हैं ।
प्यार की रस्मे कैसे निभायें,

दुनिया के दस्तूर बहुत हैं ।

किन हालातों से बीता हूँ ,

मेरे पागल दिल से पूछो ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on August 22, 2013 at 7:20pm

श्री नीरज जी दिल को सुकून और तसल्ली देती नज़्म हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ..प्रवाह और भाव बेहतरीन बन पड़े हैं !!

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