बह्र : मफऊलु फायलातु मफाईलु फायलुन (221 2121 1221 212)
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चंदा स्वयं हो चोर तो जूता निकालिये
सूरज करे न भोर तो जूता निकालिये
वेतन है ठीक साब का भत्ते भी ठीक हैं
फिर भी हों घूसखोर तो जूता निकालिये
देने में ढील कोई बुराई नहीं मगर
कर काटती हो डोर तो जूता निकालिये
जिनको चुना है आपने करने के लिए काम
करते हों सिर्फ़ शोर तो जूता निकालिये
हड़ताल, शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जूलूस तक
कोई चले न जोर तो जूता निकालिये
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
क्या बात है आदरणीय आज के मुताबिक सटीक शेर ,बधाई
बहुत बढियां गज़ल, आदरणीय धर्मेन्द्र जी ! खासकर, 'जूता निकालिए' इस रदीफ के लिए तो क्या कहने ! ढेरों दाद कबूलें.....!
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
बहुत खूब...गंभीर बातों की, रोचक अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें.
वेतन है ठीक साब का भत्ते भी ठीक हैं
फिर भी हों घूसखोर तो जूता निकालिये
bahut achha ...
वर्तमान परिपेक्ष में सटीक गज़ल, एक से बढ़कर एक शेर
बहुत खूब आदरणीय आदरणीय धर्मेंद्र जी ...
क्या कहने आदरणीय ...सही है अब बातों से बात बनती नहीं दिख रही है ....ये तेवर अपनाना ही पड़ेगा ...सौ सौ साधुवाद इस मारक ग़ज़ल पर ..जन गन मन को स्वर दिया है कमाल कमाल !!
चंदा स्वयं हो चोर तो जूता निकालिये
सूरज करे न भोर तो जूता निकालिये ...वाह क्या शानदार मतला है!!
बहुत शानदार और जोश भरी गजल कही आपने आदरणीय धर्मेन्द्र जी! बधाई !!
वेतन है ठीक साब का भत्ते भी ठीक हैं
फिर भी हों घूसखोर तो जूता निकालिये...........वाह! बहुत खूब, रिश्वतखोर नुमाइन्दो के लिए सटीक शेर
जिनको चुना है आपने करने के लिए काम
करते हों सिर्फ़ शोर तो जूता निकालिये...........यह भी खूब कहा, देश के नेताओ के लिए
वाह! आदरणीय धर्मेन्द्र जी वाह... बेईमान घूसखोरो पर बहुत सुंदर गजल प्रस्तुत की, हार्दिक बधाई स्वीकारें
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