For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" अम्मा ने कहा था"( लघु कथा )

उषा आज फिर देर से आई । मै कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी । वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक  आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे । कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......” बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच मे ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है , अम्मा ने कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना , वो  ही  तुम्हारा देवता है । और वो कड़वी सी हंसी हंस कर चल दी ।   

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 961

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on August 24, 2013 at 4:21pm
इस कथा की प्रसंशा करूँ तो मन का भाव बिगड़ता है , आशय के दृष्टिकोण से अतृप्त करने वाली रचना है .
Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:50am

अच्छी लघुकथा! अब भी भारतीय परिवारों में यही स्थिति है। भारतीय परिवेश का यह पहलू बहुत दुखद है।
इस संदेश को इतनी सुन्दरता से प्रकट करने के लिए आपको हार्दिक बधाई!
सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:10am
अन्नपूर्णा जी , बीते समय की याद दिलाती एक अच्छी लघुकथा कथा !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:05am
अच्छी लघु कथा पर ,बहुत पुराने समय को याद कर आज लिखी लघुकथा है !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2013 at 10:03am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी नारियों की ये सोच और अंधानुसरण ही नारियों को पतन के गर्त में धकेल देती हैं पर वो वक़्त पुराना था जिसमे पति को देवता का दर्जा  और नारी को देवी का दर्जा  दिया जाता था आज वक़्त को देखते हुए वैचारिकता में भी बदलाव आया है नारियों ने भी अपनी इस सोच को बदल लिया है किन्तु कुछ तबको में अभी भी बहुत कुछ बदलना बाकी है धीरे-धीरे स्थिति सुधरेगी आदरणीय योगराज जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 11:35pm
आदरणीय हेमंत जी आपका हार्दिक आभार ।
Comment by hemant sharma on August 23, 2013 at 11:20pm
ये सत्य है कि आजकल ऐसा देखने मे नहिं आता लेकिन कथा का निहितार्थ विचारणीय है. नारी आज भी उतनी ही तुच्य वस्तु है एक पुरुष के लिये जितनी की वह रामायण और महाभारत के काल मे थी. एक साधन की तरह इस्तमाल करने का आदी हो चुका है, उसे बार बार रौंदकर वह अपने आप को विश्वास दिलाता है कि वह अब भी वैसा हि है जैसा कि सदियों पहले था. सार्थक प्रयास के लिये बधाई. सादर .
Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 10:48pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी , केवल भाई जी  एवं आदरणीया विनीता जी , गीतिका जी आपका हार्दिक आभार ।

Comment by annapurna bajpai on August 23, 2013 at 10:41pm
आदरणीय प्रभाकर जी मैंने जिस नारी का चित्रण किया है वह गाँव की भोली भाली नारी है जिसको बस इतना ही समझ आया कि अम्मा ने जो कहा वह ही सही है । ........ यह मेरा पक्ष है ।
आपकी बात अपनी जगह एकदम सही है ऐसा आज के युग मे कम ही होता है । और मुझे अपनी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर बहुत अच्छा लगा । आपसे सदैव मार्ग दर्शन कि अभिलाषा मुझे रहेगी । सादर ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 23, 2013 at 9:57pm

//नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है//

यह कुछ ज्यादा नहीं हो गया अन्नपूर्णा जी ? माना कि हमारे यहाँ पति को देवता (तथाकथित) माना जाता है लेकिन किसी को मार पिटाई को देवता का प्रसाद कहते मैंने कहीं न सुना न देखा। मेरी नज़र में ये ही लघुकथा की कमज़ोर कड़ी है। अगर यही लघुकथा मैं कहता तो उस कहानी में चेहरे और शरीर पर चोटों के निशान देखकर उसकी माँ पूछती कि क्या हुआ, तब ऊषा बताती कि जिस पति को परमेश्वर मानने की नसीहत उसने दी थी यह चोटें उसी देवता का प्रसाद हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service