उषा आज फिर देर से आई । मै कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी । वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे । कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......” बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच मे ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है , अम्मा ने कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना , वो ही तुम्हारा देवता है । और वो कड़वी सी हंसी हंस कर चल दी ।
मौलिक व अप्रकाशित
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आदरणीया अन्नपूर्णा जी , यथार्थ से अवगत कराती आपकी बहुत जोरदार लघु कथा //बहुत बहुत बधाई
भारतीय नारी की, परम्परागत निरीहता का, मार्मिक चित्रण. कोटिशः बधाई अन्नपूर्णा जी.
आ0 अन्नपूर्णा जी, नारी के मनोदशा और शोषण का सुन्दर चित्रांकन किया है। बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीया अन्नपूर्णा जी!
ऐसा नहीं है की आवाज़ नही उठती स्त्री, उठाती भी है तो उसे या तो निहत्था कर देते है, या उसे चारित्रिक रूप से घोषित कर देते है| या उसे इतना समझाइस देते है की औरत को ही समझौता करना होता है, नही तो घर बिगड़ जाता है, अपने घर को सम्भालो और थोडा सा सहन करो, और ये थोडा पता नही कितना ज्यादा होता है|
खैर .... कुछ भी हो, समाज पुरुष प्रधान ही है!!
आदरणीया गीतिका जी आपका कथन सत्य है हमारे समाज की विडिम्बना ही यही है । न जाने क्यों नारी अपने प्रति हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठती । शायद डर की वजह से कि समाज क्या कहेगा ?
अम्मा ने भी यही भोग-प्रसाद उम्र भर भोगा- खाया, और बेटी को हिम्मत देने की बजाये यही रास्ता दिखा दिया| कसूर उनका नही है दरअसल,, भारतीय समाज की व्यवस्था ही ऐसी है कि यहाँ पति देवता होता है और पत्नी दासी| न जाने क्यों पति देवता और पत्नी देवी क्यों नही होती! कितनी भी पढ़ी लिखी सभी और हर कसौटी पे खरी लडकी क्यों न हो, कभी भी पति के लिए वो गर्व करने योग्य नहीं रहती, लडकी और लड़की का मायका पक्ष सदैव ही गाली खाता रहता है, लेकिन माँ बाप फिर भी यही समझाते है कि जाओ बेटी - पति का घर ही तुम्हारा असली घर है, जहाँ तुम्हारी डोली गयी है वही से अर्थी निकलेगी,, और एक दिन अर्थी भी निकल जाती है, और माँ बाप हाथ मलते रह जाते है| और पति, उसे तो दूसरे विवाह के भी प्रस्ताव आने लग जाते है|
खैर क्या किया जा सकता है और .......!
सत्य सम्प्रेषण के लिए बधाई आदरणीय अन्नपूर्णा जी!
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