२१२२ १२२ २१२२
इक नजर इक नजर से मिल रही है
बात जग को भला क्यूँ खल रही है
वो हसी चाल कोई चल रही है
रोज हल्दी वदन पे मल रही है
सर्द मौसम तन्हाई का अलम है
चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है
इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी
उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है
हो रहा बस अलावों का जिकर् ही
आग कब से दिलों में जल रही है
बाहुपाशो में बंधे हैं वदन दो
अब घड़ी मौत की भी टल रही है
हुश्न ने जिस घड़ी सीखा मचलना
तब से उल्फत दिलों में पल रही है
प्रेम की ही तपिश का ये असर है
पर्वतों सी जमी हिम गल रही है
सब समझ बैठे उल्फत बासना है
सोच ये आशु अब भी चल रही है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
इक नजर इक नजर से मिल रही है
बात जग को भला क्यूँ खल रही है
क्या बात है बहुत खूब. बधाई आपको ....
बेहद सुन्दर प्रयास है आदरणीय आपका निरंतर प्रयास निखर रहा है यह जान कर प्रसन्नता हो रही है. आदरणीय कृपया ग़ज़ल की बातें या ग़ज़ल की कक्षा जरुर ज्वाइन करें आपको काफी लाभ होगा.
सर्द मौसम तन्हाई का अलम है
चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है .. आदरणीय इस शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष है और क्या आलम को अलम लिख सकते हैं? कृपया अन्यथा न लें मैं अल्प ज्ञानी हूँ सिर्फ ज्ञान बढ़ाने हेतु पूंछ रहा हूँ. ध्रिष्ठता हेतु प्रायः क्षमा प्रार्थी हूँ
आदेर्नीया मंजरी जी, वंदना जी , आदरनीय विशाल जी , केवल जी , अरविन्द जी आपका प्रोत्साहन ही मुझे निरंतर हौसला प्रदान करता है ..तहे दिल आप सभी का धन्यवाद
इक नजर इक नजर से मिल रही है
बात जग को भला क्यूँ खल रही है
बढ़िया गज़ल
वो हसी चाल कोई चल रही है
रोज हल्दी वदन पे मल रही है
इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी
उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है
वाह - वाह......कुछ कमाल के अशआर से सजी.....तारीफ के काबिल गजल हुई है.......दिल से बधाई भाई !!!!
आ0 आशुतोष भाई जी, सादर प्रणाम! बेहतरीन गजल प्रस्तुति के लिए तहेदिल से दाद कुबूल करें। सादर,
वो हसी चाल कोई चल रही है
रोज हल्दी वदन पे मल रही है
क्या बात है, .............बधाई आशुतोष जी
वो हसी चाल कोई चल रही है
रोज हल्दी वदन पे मल रही है आदरणीय आशुतोष जी बधाई . सलीके से बात रख दी आपने .
आदरणीया विनीता जी एवं ब्रिजेश जी ...उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद
वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको बहुत बहुत बधाई!
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