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अरुन शर्मा 'अनन्त' : Bhai ji sarahnaa ke bahut bahut dhanyawaad
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय
शुभकामनायें
आँय-बाँय बकवाय ये, साँय साँय उधियाय |
हाँय-नाय उलझाय के, बना निकम्मा जाय ||
सारी रतिया जागकर मिलत खिलत बतियात
पलक पलक झपकत रही, नैन रहे लजियात .. आय हाय
नैन रहे लजियात, बेध कर उर मा बासै
मैन मोय अकुलात,सोच कर उठि उठि सांसै .... वाह
कह सागर सुमनाय , प्रेम सौं नहीं बिमारी
लगै जो एकौ दांय , छुटे न उमर ये सारी... लाजवाब अति सुन्दर.
आशीष भाई प्रेम को सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने, लाजवाब कुण्डलिया छंद हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें. आनंद आ गया भाई.
गिरिराज भंडारी जी , सुप्रभात , आपका उत्साह वर्धन करने के लिए ह्रदय से आभार
श्याम जी , आभार की आपने त्रुटि को इंगित किया , बात से सहमत हूँ |
आशीष भाई , बहुत सुन्दर कुन्डलिया रची आपने !! बधाई !!
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