मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे
पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे
चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो
मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे
कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी
सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे
कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर
मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे
तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा
तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे
तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ; मोतबर= विश्वसनीय
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अदरणीय ललित कुमार जी, क्या कहने...
लाजवाब गज़ल ...
जी मुक्तसर का मतलब है - कम
शुक्रिया आदरणीय सादर
आदरणीय डॉ. ललित सर आपकी ग़ज़ल हमेशा ही बेहतरीन और दिल को छूने वाली होती है, यह भी एक बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबूल फरमाएँ
//कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर
मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे// यहाँ "मुक्तसर" शब्द का अर्थ समझाएँ तो इस शेर को समझने में आसानी होगी
आदरणीय ललित जी , तेहतरीन गज़ल हुई , वाह वाह !! बधाई !!
चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो
मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे------------ क्या बात है !!
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