For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता – प्रेम के स्वप्न ! (अभिनव अरुण)

कविता – प्रेम के स्वप्न


हां , बदल गयी हैं सड़कें मेरे शहर की

मेरा महाविद्यालय भी नहीं रहा उस रूप में

पाठ्य पुस्तकें , पाठ्यक्रम जीवन के

बदल गए हैं सब के सब

 

कई कई बरस कई कई कोस चलकर

जाने क्यों ठहरा हुआ हूँ मैं

आज भी अपने पुराने शहर  

शहर की पुरानी सड़कों पर

उन मोड़ों के छोर पर

बस अड्डे और चाय की दुकानों पर भी

जहां देख पाता था मैं तुम्हारी एक झलक

 

हाँ , मैंने तुम्हें लिखे थे प्रेम पत्र भी

लाल नीली हरी सियाहियों वाले प्रेम पत्र

कई पंक्तियों को रेखांकित किया था

कुछ शायरी भी टांकी थी उनमें

अपने लिखे पत्रों को पढ़कर आहें भरता मुस्कुराता भी था मैं

पर कभी तुम तक पहुँच नहीं सके वे पत्र

और जानता हूँ नहीं पहुंची कभी भी तुम तक मेरी प्रेम की अभिव्यक्ति

 

इस प्रकार असफल ही रहा मैं प्रेम की उस राह पर

जिस पर चलकर कवि रच जाते हैं प्रेम की अमर कवितायेँ

 

और मैं धीरे धीरे दूर होता गया शहर से

शहर के कोलाहल से

अपने भीतर बसा लिए मैंने

सर्वहारों के कई कई गाँव

जहां आज भी बनते हैं घोसले तिनका तिनका जोड़कर

आज भी मिलता है अनाज के बदले सामान पंसारी की दुकानों में  

पूरी मजूरी के लिए झगड़ते है मजदूर और सामंत

जहां आज भी जन गण अनभिज्ञ है मुग़लों और अंग्रेजों के होने या न होने से

 

जानते हो मेरे अंतर के गाँव में बारिश के लिए मानी जाती हैं मन्नतें

चढ़ाये जाते हैं डीहों के देव को पुए और पकवान

फसल अच्छी हुई तो आज भी निकाला जाता है अन्न का एक भाग

अंगऊं के रूप में

और मेरे गाँव में आज भी जारी है जारों से वर्ग संघर्ष

आज भी पढ़ी जाती है मार्क्स की थ्योरी छुप छुप कर

लगाए जाते हैं समानता की मांग के नारे

आज भी बेड़ियों में जकड़ा है मेरे अंतर का गाँव

और मेरे गाँव में नहीं देखता कोई

खुली या बंद आँखों भी प्रेम के स्वप्न 

                         - अभिनव अरुण 

                           {29082013}

                  * सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 1153

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2013 at 10:30am

यादें ताज़ा करती रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री गीत जी !

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2013 at 10:29am

धन्यवाद आदरणीय डॉ ललित जी 

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2013 at 10:28am

हार्दिक आभार आदरणीय वंदना जी 

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2013 at 10:28am

श्री श्याम जी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया !1

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2013 at 10:27am

बहुत आभार और शुक्रिया श्री अरविन्द शेखर जी स्नेह बना रहे बंधुवर !!

Comment by Abhinav Arun on August 30, 2013 at 10:26am

आदरणीया राजेश जी बहुत आभार आपका ..आपकी समीक्षा मेरे भावों और उनकी अभिव्यक्ति को आत्मबल प्रदान करेगी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 30, 2013 at 10:05am

  प्रिय अभिनव जी आज ये अलग ही तरह की रचना पढ़ रही हूँ आपकी क्या कहूँ इसके भावों ने अंतर्तल को विह्वल करके रख दिया है बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है बहुत बहुत बधाई| 

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 30, 2013 at 8:37am

प्रिय अभिनव जी,
"जहां आज भी बनते हैं घोसले तिनका तिनका जोड़कर", कभी सोचियेगा क्यों बनते हैं ........ इस लिए बनते हैं क्योंकि आज भी बेड़ियों में जकड़े हमारे अंतर के गाँव में देखे जाते हैं प्रेम के स्वप्न खुली या बंद आँखों से ........ एक शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई । शेखर

Comment by vandana on August 30, 2013 at 7:08am

बहुत सुन्दर भाव चित्रण आदरणीय अभिनव जी 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 30, 2013 at 5:49am

अति सुंदर चित्रण

बधाईAbhinav Arun JI

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service