For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पांच दोहे

 

खुद के अन्दर झाँक के, पढ़  ले तू आलेख

अपने ऐसे हाल का,  खुद  खींचा  आरेख

 

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास

 

पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय

रे मन चल लग ठौर से,तू काहे पछुवाय

 

अन्धियारी में जुँ रहे, दीपक ही की खोज

अपने अन्दर खोजना, अपना सुख तू रोज   

 

बंद आँख कर देखिये,त्रितिय आँख की ओर

ध्यान सरलता से करें,तनिक न दीजे जोर

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1217

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 3, 2013 at 12:02am

 सुंदर संदेशप्रद दोहों पर बधाई आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 10:28pm

रमेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 10:27pm

आदरणीया डा. प्राची जी , मै तो डर रहा था , पहली बार दोहा प्रयास लिया , और डरते 2 आपके कमेण्त की राह देख रहा था !! सराहना के लिये बहुत आभार !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 2, 2013 at 10:01pm
गिरीराज भंडारी के, सुंदर पांच दोहे ।
बढिया है ज्ञानवर्घक, सभी को ले मोहे ।।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 2, 2013 at 9:57pm

आदरणीय गिगिराज भंडारी जी 

आत्मान्वेषण की भूमि पर बहुत सुन्दर दोहावली प्रस्तुत की है 

यह दोहा खास तौर पर बहुत पसंद आया ...

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास............ भीतर जी ..वाह ! अपने आत्मस्वरुप को यह सम्मान देना मुग्ध कर गया 

बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 9:44pm

आदरणीय केवल भाई , आपका बहुत बहुत आभार !! अगर आप -"संप्रेषण" को मुझे समझा सके तो आभारी रहूंगा !!इसका क्या तातपर्य है , अगर उदाहरण दे सके तो और भी अच्छा !! मुझे आप शून्य ही समझ कर समझायें ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 9:34pm

आदरणीय गणेश भाई , आपकी सराहना निश्चित मेरे लिये उत्साह वर्धन का कारक है !! बहुत बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 9:28pm

श्याम भाई , स्व. दुश्यंत कुमार जी की गज़ल की चार  लाइनें सहसा याद आ गईं --

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चहिये ,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये !!

मेरे सीने मे नही तो तेरे सीने मे सही

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 9:22pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , दोहों की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 2, 2013 at 9:19pm

आदरणीय भंडारी साहब, सभी दोहें अच्छे लगें, बहुत बहुत बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service