रात भर सोया नहीं
बस सोचता रहा
कब काली रात जायेगी
रवि अपनी किरणें फैलाएगा
बहुत लम्बी रात थी
जो नहीं था उसे खोजता रहा
अंतहीन धुंध के खौफ से
डरता कांपता
बार-बार खुद से यही पूछता
क्या सफल हो पाऊंगा?
सुबह हुई
पर कोई नयापन नहीं
अचानक
चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा
एक भी पत्ते नहीं थे
शायद !मुझसे कह रहा था
धैर्य रखो बसंत आने तक।
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय राज जी अमूल्य सुझाव के लिए //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई ब्रिजेश जी,रचना आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय मिश्र जी //सादर
आदरणीय राम भाई! बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति! यह रचना आपके प्रयासों की सफलता को इंगित करती है। आपको हार्दिक बधाई!
अति सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
अच्छा प्रयास है. 'एक भी पत्ते नहीं थे' को 'एक भी पत्ता नहीं था' कर लें. अंग्रेज़ी में हालांकि ऐसा लिख सकते हैं- 'there were no leaves'.
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम जुनेजा जी,स्नेह यूँ ही बनाए रखें //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय रविकर जी //सादर
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