करें हम
मान अब इतना
सजा लें
माथ पर बिन्दी।
बहे फिर
लहर कुछ ऐसी
बढ़े इस
विश्व में हिन्दी।।
गंग सी
पुण्य यह धारा
यमुन सा
रंग हर गहरा
सुबह की
सुखद बेला सी
धरे है
रूप यह हिन्दी।।
मधुरता
शब्द आखर में
सरसता
भाव भाषण में
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त यह हिन्दी।।
तोड़कर
बॅंध दासता के
सभी भ्रम
जाल भाषा के
बसा लें
प्रेम अब इसका
प्रथम हो
देश में हिन्दी।।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया शुभ्रा जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय रमेश जी आपका बहुत बहुत आभार!
आदरणीय ब्रजेश नीरज जी , आपने अपनी भावपूरित कविता से मातृभाषा हिंदी को जो मान दिया है ,तहे दिल से बहुत बहुत बधाई
प्रेम अब इसका
प्रथम हो
देश में हिन्दी।।
आपके इस पंक्ति में मै भी अपनी शुभेच्छा सम्मिलित करना चाहता हू । आपके हिन्दी प्रेम एवं साहित्य प्रेम को सादर नमन
आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बहुत बल मिला।
आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी ,हिन्दी के प्रति आपका समर्पण साफ दिख रहा है ///बहुत ही सुंदर रचना हार्दिक बधाई आपको //सादर
गंग सी
पुण्य यह धारा
यमुन सा
रंग हर गहरा
सुबह की
सुखद बेला सी
धरे है
रूप यह हिन्दी।।......बहुत ही सुंदर शब्दावली से मातृभाषा की सुन्दरता का अनुपम गुणगान
हिन्दी मातृभाषा से लगाव , सुन्दरता व् मान को बयां करती, बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी
आ0 बृजेश भाई जी, सादर प्रणाम! बहुत खूब।
//मधुरता
शब्द आखर में
सरसता
भाव भाषण में
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त यह हिन्दी।।
//इन सुन्दर भावों के लिए आपको बहुत बहुत हार्दिक बधाई। सादर,
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