श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।
सरल मन की देहरी पर
हुये पाहुन सजल सपने,
प्रीति सुंदर रूप धरती,
दोस्त-दुश्मन सभी अपने,
भ्रमित है मन, झूठ-जग में सहज पथ के गाँव माँगे।
कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।
भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।
श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. बधाई स्वीकारें
कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।.......अनुपम सुंदर भाव ली हुयी पंक्तियाँ
वाह! बेहद सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया मानोशी जी
भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।
श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।/////////अनुपम पंक्तियाँ
बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया मानोशी जी हार्दिक बधाई आपको //सादर
आ0 मानोशी जी, सादर प्रणाम! वाह! अप्रतिम गीत....बहुत खूब। इन सुन्दर भावों में दिेए गए स्वरूप को सादर नमन! आपकी रचना पर टिप्पणी करने पर मुझे गर्व है। इस प्रस्तुति हेतु आपको बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधाई। सादर,
आदरणीया मानोशी जी,
‘उन्मेष’ के गीतों को पढ़कर जो अनुभूति हुई थी फिर ताजा हो गयी। आपके गीत वास्तव में इतनी मधुरता और सहजता से अंतस में उतरते हैं कि बस उसकी लय में पाठक रमता चला जाता है।
इस सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई।
वाह-वाह आदरेया, मन प्रसन्न हो गया इस सुंदर रचना को पढ़कर । बहुत बधाई, सादर
धन्यवाद श्याम जी, अन्नपूर्णा जी, रविकर जी, गिरिराज जी। आप सब को यह रचना अच्छी लगी, यह मेरे लिये पुरस्कार समान है।
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ....
अनुपम ! अनुपम ! क्या लिखूँ और शब्द ही नहीं है आ० मनोशी जी ।
श्रेष्ठ रचना-
सादर आभार आदरेया
कृपया दूसरे छंद में इन्हें आजमायें-
अनुभाव माँगे =सामर्थ्य माँगे
पाँव माँगे =
दाँव माँगे-
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