For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज फिर एक सफ़र में हूँ...
आज फिर किसी मंज़िल की तलाश में,
किसी का पता ढूँढने,

किसी का पता लेने निकला हूँ,

आज फिर...

सब कुछ वही है...
वही सुस्त रास्ते जो
भोर की लालिमा के साथ रंग बदलते हैं,
वही भीड़
जो धीरे-धीरे व्यस्त होते रास्तों के साथ
व्यस्त हो जाती है,
वही लाल बत्तियाँ
जो घंटों इंतज़ार करवाती हैं,
वही पीली गाड़ियाँ
जो रुक-रुक कर चलती हैं,
कभी हवा से बात करती हैं,
तो कभी साथ चलती अपनी सहेलियों से कानाफ़ूसी,
उन्हीं में से एक में बैठा मैं,
वही...
वही पीछे की ख़ाली सीट,
और वही मेरा दायाँ हाथ सीट पर
किसी हाथ को अनजाने ही ढूँढता सा...

रास्ते भर ढूँढती हैं आँखें
वही पावभाजी वाला ठेला,
उस काले बड़े तवे पर सब्ज़ियों के साथ
तुम्हारी आँखों के आश्चर्य का मिश्रण,
और वही आइस्क्रीम... डेयरी मिल्क वाली,
मगर आज बँधा है पालीथीन का एक ही बैग...
है सब वही,
मगर आज बस एक ही चम्मच,
छोटी सी, वही...लकड़ी की...पर बस एक...

वही तुड़ा-मुड़ा आसमां आज भी...
शायद आज भी बरस पड़े कोई बादल फट कर,
फिर शायद बनें रास्ते में कोई पोखर
जहाँ मिल जाये एक तैरती कागज़ की नाव,
वह छोटा सा मंदिर,
जो अचानक ही मिल गया था
खुले बरसते बादलों के नीचे,
वही शिवलिंग
और हमारा साथ-साथ हाथ जोड़ना...
तुम्हारी श्रद्धा और मेरा तुम्हारा मन रखना...

आज मैं अकेले खड़ा हूँ, बिना हाथ जोड़े...

वह लंबी सड़क,
सड़क के पास बड़ी सी पानी की खाल,
वही हवा,
वही धूप,
वही खुश्बू,
हर जगह
वही सब कुछ।
बस नहीं हो, तो तुम...

पर हो तो...तुम वही...
मेरे साथ हो तुम...वही तुम...

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 651

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manoshi Chatterjee on October 20, 2013 at 11:07am

आदरणीय सभी जिन्होंने इस कविता को सराहा, असंख्य धन्यवाद। 

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:26pm

वह लंबी सड़क,
सड़क के पास बड़ी सी पानी की खाल,
वही हवा,
वही धूप,
वही खुश्बू,
हर जगह
वही सब कुछ।
बस नहीं हो, तो तुम...

शब्दों और भावों का बहुत सुंदर संचयन.....जो अंत तक पाठक को बांधे रखता है.

सादर

कुंती

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2013 at 9:56pm

मनुष्य जीवन भर मंजिल तलाशता रहता है | विचारों का द्वन्द चलता रहता है, पथ पर चलते चलते भी विचारों में खोया रहता है |

और खोया रहता है अपनों की स्म्रतियों में | फिर कभी अपने के अकेला खडा पाता है | पाठको को भी विचार मंथन को विवश करती

सुन्दर रचना के लिए बधाई आदरणीया  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 8:19pm

सूक्ष्म भाव और स्थूल संज्ञा के बीच के द्वन्द्व का सुन्दर शब्द-चित्रण हुआ है, आदरणीया मानोशी जी.

आदमी जहाँ हो कर भी नहीं होता, जिसके साथ नहीं होता, एक वायव्य संसार रच उसे वहीं जीने लगता है. फिर सायास दोनों संसारों को जोड़ स्वयं संतुष्ट हो लेता है.  यह आत्मजीविता उस कारण या उन कारणों को बहुत दूर रखती है जिनका परिणाम उक्त परिस्थितियाँ हुआ करती हैं, जिनसे कविता का नायक गुजरता हुआ दीख रहा है.

चूँकि बिम्बों की सार्थकता पात्रों के सापेक्ष ही उपयुक्त हुआ करती है, सो एकाकीपन को जीता नायक पात्रों या पात्र को तिरोहित नहीं होने देता.

नेपथ्य की ऐसी मनोदशा से गुजरती हुई यह रचना कवि को ही नहीं उसके पाठकों को भी संतुष्ट करती है.
हम भी संतुष्ट हुए आदरणीया.
सादर
    

Comment by विजय मिश्र on October 17, 2013 at 12:17pm
विछोह की पीड़ा उभरकर आई है और शब्द शब्द उस क्षण के सजीव चित्रण में समर्थ सहयोग कर रहे हैं . आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 16, 2013 at 11:39pm

आदरणीया मानोशी जी, दिनचर्या के साथ-साथ चलती हई स्मृतियाँ.........  विरह जीवंत हो उठा .

Comment by Sushil.Joshi on October 16, 2013 at 8:57pm

विरह भावों को बहुत ही सुंदर तरीके से रचना में पिरोया है आपने आदरणीया मानोशी जी.... बधाई हो आपको इस सुंदर कृति के लिए....

Comment by वेदिका on October 16, 2013 at 8:34pm

आह!... वियोग के भावों को आपने अपनी रचना से भरपूर समृद्ध किया है|

बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 7:53pm

अपनों का साथ कभी-कभी न होकर भी कितना पास होता है! भीड़ में होते हुए भी अकेलेपन के एहसास, और दूर होकर भी पास होने के भाव को बहुत खूब जिया है आपकी कविता ने. बहुत सुन्दर कविता! 

आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 6:49pm

आदरणीया मानोशी जी , वियोग काल की मनः स्थिति का बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने अपनी रचना में !! सुन्दर विरह रचना के लिये आपको हार्दिक् बधाई !!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"क्या खूब कहा आदरणीय निलेश भाई सादर बधाई,   “जो गुज़रेगा इस रचना से ‘नक्की’…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.  //व्यावहारिक रूप में तो चाँद…"
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
Tuesday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service