तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ।
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
तुम भी सोते नहीं हो रातों को,
हम भी बस करवटें बदलते हैं ।
तुम शमा बन के उधर जलते हो,
हम इधर मोम से पिघलते हैं ॥
उस तरफ तुम भी बेक़रार से हो, और यहाँ पर भी बेकरारी है ।
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
तुम बहुत दूर हो मुझसे लेकिन,
जाने क्यूँ आस-पास लगते हो ।
कल तलक अजनबी के जैसे थे,
आज क्यूँ इतने ख़ास लगते हो ॥
दिल तो पहले ही "वीर" दे बैठे, अब तो ये जान भी तुम्हारी है |
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ॥
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना, हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Meena Pathak जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय SANDEEP KUMAR PATEL जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ... :)
आदरणीय रविकर जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया....
आदरणीय Dr Ashutosh Vajpeyee जी बस इसी दोष्निवारण हेतु आया हूँ आप सब के सानिध्य में शायद मै भी संवर जाऊं ..... बहुत बहुत शुक्रिया
सुन्दर गीत बहुत बधाई आपको इस अनुपम रचना के लिए आ0 अनिल जी ।
अति उत्तम ... बधाई
बहुत ही सुन्दर गीत रचा है आदरणीय सादर बधाई स्वीकारें ....................जय हो
बढ़िया विछोह-
शुभकामनायें आदरणीय-
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई किन्तु शैल्पिक दोष बहुत अधिक है बन्धु......रचना किसी वरिष्ठ को दिखा लिया कीजिये तब पोस्ट कीजिये तो उचित रहेगा......और तभी आपको शैल्पिक सिद्धि भी मिलेगी.....शुभकामनाएं
Giriraaj sir शुक्रिया
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