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स्‍वाति सी कोई कथा-कहानी

चातक का इक शहर, लिखो ना

कसमस करती

इक अंगड़ाई

गुनगुन गाता

भ्रमर, लिखो ना

चैताली वो रात सुहानी

शारद-शारद

डगर, लिखो ना

किसी कास की शुभ्र हँसी में

होती कैसी लहर, लिखो ना

इक देहाती

कोई दुपहरी

पीपल की

कुछ सरर, लिखो ना

शीशे सा वो

थिरा-थिरा जल

अनमुन बहती

नहर, लिखो ना

पारिजात की भीनी खुशबू

धिमिद धिमिद वो ठहर, लिखो ना

हंसी-ठिठोली

करती राधा

सुर में गाता

अमर, लिखो ना

पूजन सा वो

खिला समर्पण

मंदिर सा वो

जिगर, लिखो ना

तितली भरी किताबों जैसी

उड़गन की कुछ खबर, लिखो ना

सामवेद की

शाखा छूकर

आयी पहली

प्रहर, लिखो ना

केसरिया कुछ

सांझ सुहानी

जुगनू वाले

शज़र, लिखो ना

महुए का वो रग-रग छूना

गुड़ सा पकता उमर, लिखों ना

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2013 at 4:06pm

बेहतरीन 

Comment by ram shiromani pathak on September 7, 2013 at 3:27pm

इक देहाती

कोई दुपहरी

पीपल की

कुछ सरर, लिखो ना

शीशे सा वो

थिरा-थिरा जल

अनमुन बहती

नहर, लिखो ना

पारिजात की भीनी खुशबू

धिमिद धिमिद वो ठहर, लिखो ना//

वाह आदरणीय राजेश जी अनुपम शब्द संयोजन ,बहुत ही सुन्दर गीत //हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by vandana on September 7, 2013 at 7:21am

बहुत बहुत खूबसूरत 

Comment by annapurna bajpai on September 6, 2013 at 11:53pm

वाह !!!!!!!!!!!!!!! बहुत ही बढ़िया , सुंदर , अनुपम  रचना बधाई स्वीकारे आ0 । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 6, 2013 at 7:26pm

आ0 राजेश भाई जी,    वाह..वाह..बहुत सुन्दर नवगीत।    आपको बहुत-बहुत हार्दिक बधाई।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 6, 2013 at 6:01pm

वाह्ह्ह्ह्ह राजेश कुमार झा जी बहुत ही मनोहारी मुग्ध करने वाला गीत लिखा गाँव की दुपहरी चम्पई रातें प्रकृति सब का एक चित्र सा मुखरित कर दिया शब्दों माध्यम से
एक संशय ---गुड़ सा पकता उमर, लिखों ना----उमर शायद वयस के लिए लिखी तो स्त्री लिंग हुई तो पकता कैसे आएगा
उडगन है या उड्गन ?
हंसी-ठिठोली
करती राधा
सुर में गाता
अमर, लिखो ना
पूजन सा वो
खिला समर्पण
मंदिर सा वो
जिगर, लिखो ना
तितली भरी किताबों जैसी
उड़गन की कुछ खबर, लिखो ना
लाजबाब लाजबाब ,हार्दिक बधाई इस नवगीत पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2013 at 4:32pm

आदरणीय राजेश भाई , लाजवाब गीत की रचना की है आपने , पढ़्ना शुरु किया तो बस पढ्ता की गया , जैसे बह रहा  होउँ !!  इस गीत का खतम होना ने मन को अखरा दिया दिया हो !! बहुत हार्दिक बधाई !!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2013 at 4:17pm

आदरणीय राजेश सर जी सादर प्रणाम 
बहुत ही सुन्दर गीत रचा है आपने 

इक देहाती

कोई दुपहरी

पीपल की

कुछ सरर, लिखो ना

शीशे सा वो

थिरा-थिरा जल

अनमुन बहती

नहर, लिखो ना

पारिजात की भीनी खुशबू

धिमिद धिमिद वो ठहर, लिखो ना..............शानदार ..........बहुत बहुत बधाई स्वीकारें 

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