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तपती वसुन्धरा  में 
श्रम सक्ती के समन्वय रूपी खाद में
निर्माणों के

विशालकाय पेंड़ो को रोपता है
अपने कंधो के सहारे ढोता है

गरीवी का बोझ
जिसमे उसका स्वाभिमान

दबा हैं , कुचला है
मन अनंत गहराईयों में

डूबता उतराता चुप है
शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है
निर्माणों के अंधे युग में  आज
निर्माण से ही दूर हो गया है


मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप तिवारी  रचना -८ /९/१ ३

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Comment

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Comment by दिलीप कुमार तिवारी on September 12, 2013 at 9:29pm

"आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका हार्दिक आभार!"

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on September 12, 2013 at 9:28pm

आदरणीया प्राची जी रचना पढ़ने के लिए ह्रदय से आभार ......

Comment by ram shiromani pathak on September 11, 2013 at 8:30pm

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना //हार्दिक बधाई आपको आदरणीय तिवारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 11, 2013 at 4:10pm

"मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है 
निर्माणों के अंधे युग में  आज 
निर्माण से ही दूर हो गया है

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कथ्य.संवेदन शील सामाजिक लेखन पर बहुत बहुत बधाई 

कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी हैं , उन्हें अवश्य ही सुधार लें 

शुभेच्छाएँ 

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on September 11, 2013 at 12:19am

मुझे आप लोगो  द्वारा दिया गया कमेंट मेरे लिए आशीर्वाद है जो मेरे कविता को नयी दिशा देगा सादर
प्रणाम के साथ आभार ........................

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 1:38pm

आ0 दिलीप जी बहुत बधाई आपको , बढ़िया ढंग से मजदूर की व्यथा का चित्रण किया है । 

Comment by vijayashree on September 10, 2013 at 12:35pm

शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है 
निर्माणों के अंधे युग में  आज 
निर्माण से ही दूर हो गया है

भावनात्मक  अभिव्यक्ति

हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 10, 2013 at 12:53am

बहुत सही विषय पर , लिखी गयी भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय दिलीप जी

Comment by Vindu Babu on September 9, 2013 at 6:10pm
मजदूर का यथार्थ चित्र खींचा है आपनेआदरणीय।
सादर बधाई आपको।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 9:39am
दिलिप भाई , बहुत सुन्दर रचना !! बधाई !!

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