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तपती वसुन्धरा  में 
श्रम सक्ती के समन्वय रूपी खाद में
निर्माणों के

विशालकाय पेंड़ो को रोपता है
अपने कंधो के सहारे ढोता है

गरीवी का बोझ
जिसमे उसका स्वाभिमान

दबा हैं , कुचला है
मन अनंत गहराईयों में

डूबता उतराता चुप है
शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है
निर्माणों के अंधे युग में  आज
निर्माण से ही दूर हो गया है


मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप तिवारी  रचना -८ /९/१ ३

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 9:50pm

शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है 
निर्माणों के अंधे युग में  आज 
निर्माण से ही दूर हो गया है

पर अगर हम किसी निर्माण की नींव में झाककर देखेंगे तो उस मजदूर के आत्मा के दर्शन हो जायेंगे!!

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