For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ

बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२

 

मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ

महलों को जोर शोर से खलती हैं चींटियाँ

 

मौका मिले तो लाँघ ये जाएँ पहाड़ भी

तीखी ढलान पे न फिसलती हैं चींटियाँ

 

रक्खी खुले में यदि कहीं थोड़ी मिठास हो

तब तो न उस मकान से टलती हैं चींटियाँ

 

पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला

अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ

 

शायद कहीं मिठास है मुझमें बची हुई

अक्सर मेरे बदन पे टहलती हैं चीटियाँ

 

सड़कों पे देखभाल के ‘सज्जन’ चलो, यहाँ

भोजन तलाशने को निकलती हैं चींटियाँ

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 11, 2013 at 6:50pm

बहुत बहुत धन्यवाद annapurna bajpai जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 11, 2013 at 6:48pm

बहुत बहुत शुक्रिया hemant sharma जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 11, 2013 at 4:29pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी आपकी ग़ज़लें अलग ही होती है, इस ग़ज़ल मे भी आपने चींटियों का खूबसूरती से इस्तेमाल किया है, इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई

Comment by vandana on September 11, 2013 at 6:28am

पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला

अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ

गहन अध्ययन की छाप है ग़ज़ल में आदरणीय धर्मेन्द्र सर 

Comment by वीनस केसरी on September 11, 2013 at 1:38am

मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ

महलों को जोर शोर से खलती हैं चींटियाँ ............ इंकलाबी मतला हुआ है भाई

 

मौका मिले तो लाँघ ये जाएँ पहाड़ भी

तीखी ढलान पे न फिसलती हैं चींटियाँ..... बढ़िया

 

रक्खी खुले में यदि कहीं थोड़ी मिठास हो

तब तो न उस मकान से टलती हैं चींटियाँ  .......... भर्ती का शेर लगा .. मैंने इसमें कोई बात/बिम्ब नहीं तलाश सका 

 

पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला .......... उला और शानदार हो सकता है

अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ ........... शानदार भाव है

 

शायद कहीं मिठास है मुझमें बची हुई

अक्सर मेरे बदन पे टहलती हैं चीटियाँ ........... खतरू शेर है .. जिंदाबाद

 

सड़कों पे देखभाल के ‘सज्जन’ चलो, यहाँ

भोजन तलाशने को निकलती हैं चींटियाँ ........
भोजन शब्द से ये स्पष्ट है कि आप उनका भोजन हैं .......
मैं तुमसे कहूँगी इसी बात को अगर तुम थोडा घुमाफिरा कर कहते जरा सजा धजा कर कहते तो अच्छा होता  (प्रीटी जिंटा - लक्ष्य)

Comment by मोहन बेगोवाल on September 10, 2013 at 11:06pm

आदरनीय धर्मेन्द्र जी, आप की गजल बहुत उम्दा हे ,ये शेर बहुत अच्छा लगा 

पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला

अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ  --- बधाई हो 

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 10, 2013 at 10:42pm

चींटियों से इंसान बहुत कुच सीख सकता है । धर्मेंद्र भाई बधाई ।                                                                                    सुंदर गजल के लिए और गजल में चींटियों का गुण गान रोचक ढंग से  करने के लिए॥ 

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:36pm
पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला
अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ .................. sundar bhav sampreshit hua hai adarniy .
Comment by hemant sharma on September 10, 2013 at 10:29pm
बहुत हि अच्छी गजल बधाई..........
//पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला
अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ//
अति सुन्दर......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
7 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
19 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service