१२२२...१२२२
नज़र दर पर झुका लूँ तो
मुहब्बत आज़मा लूँ तो
तेरी नज़रों में चाहत का
समन्दर मैं भी पा लूँ तो
बदल डालूँ मुकद्दर भी
अगर खतरा उठा लूँ तो
सियह आरेख हाथों का
तेरे रंग में छुपा लूँ तो
तेरी गुम सी हर इक आहट
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो
तुम्हारे संग जी लूँ मैं
अगर कुछ पल चुरा लूँ तो
न कर मद्धम सी भी हलचल
मैं साँसों को सम्हालूँ तो
तुम्हें ये राज क्या कहना
इसे दिल में छुपा लूँ तो
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बेहद खूबसूरत गज़ल ...
आप की रचना पढ़ कर
निःशब्द हूँ मैं तो ...................आदरणीया प्राची जी सुन्दर गज़ल हेतु बधाई स्वीकारें | सादर
वाह बहुत खूब बेहतरीन..
बदल डालूँ मुकद्दर भी
अगर खतरा उठा लूँ तो //वाह वाह !
बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीया प्राची जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर
आदरणीय सौरभ जी
गज़ल के कहन पर आपकी प्रोत्साहित करती सराहना के लिए सादर धन्यवाद.
इता दोष मुझे समझ में आ गया है.. मैं इसे दूर करने का प्रयत्न कर रही हूँ.
बाकी छोटी छोटी त्रुटियों पर भी बहुमूल्य मार्गदर्शन मंच पर आप सबसे प्राप्त हुआ है और वीनस जी से भी इस गज़ल की कमियों पर विस्तृत विवेचना ली है.. उनको ध्यान में रखते हुए निश्चय ही सतत अभ्यास से गज़ल लेखन सधता जाएगा..
सादर
आदरणीया विजयश्री जी
गज़ल के शब्द भाव आपको पसंद आये ..यह जानना बहुत उत्साहवर्धक है
प्रोत्साहन के लिए सादर धन्यवाद
सादर धन्यवाद आ० लक्ष्मण जी
गज़ल पर आपके प्रोत्साहन और अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० पियूश जी
गज़ल के भावों का प्रशंसात्मक अनुमोदन करने के लिए धन्यवाद आ० सावित्री राठौर जी
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