एक शाम
उदास सी थी
निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित
निहारती सी
दूर तलक शून्य मे।
कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन
अचेतन जड़ हो गए जो
पुकारती सी
दूर तलक शून्य मे ।
नेपथ्य से कुछ सरसराहट
वैचारिक या मौन
विजयी पर प्रसन्न नहीं
श्रोता सी
दूर तलक शून्य मे ।
अन्तर्मन के क्रंदन को
छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो
अलौकिक आभा थी
दूर तलक शून्य मे ............... ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीया अन्नपूर्णा जी इस सुंदर रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकारें
नेपथ्य से कुछ सरसराहट
वैचारिक या मौन
विजयी पर प्रसन्न नहीं
श्रोता सी
दूर तलक शून्य मे ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी ...सुन्दर शब्द समन्वय गूढ़ अर्थ ..अच्छी रचना
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया अन्नपूर्णा जी बधाई स्वीकारें
अति सुंदर व् प्रभावशाली रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी
आहा, अतुकांत शैली में लिखी यह रचना अत्यंत ही खुबसूरत लगी, भावों का अच्छा सम्प्रेषण हुआ है, बधाई प्रेषित करता हूँ ।
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