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कुछ अधखुले बीज....

कुलबुलाते कुछ अधखुले बीज

मेरे बरामदे के कोने में पड़े हैं

शायद माँ ने जब फटकारे

तो गिर गए होंगे

बारिश के होने से कुछ पानी और

नमी भी मिल गयी उन्हें

सफाई करते ध्यान भी नहीं दिया

बड़ी लापरवाह है कामवाली भी

दो दिन हुए हैं और बीजों ने

हाथ पैर फ़ैलाने शुरू कर दिए

हाँ ठीक भी तो है

मुफ्त में मिली सुविधा से

अवांछित तत्व फलते-फूलते ही हैं

पर अब जब वो यूँही रहे तो

बरामदे में अपनी जड़े जमा लेंगे

फिर ज़मीन में पड़ेंगी दरारे भी

मेरी माँ का खूबसूरत सा

बरामदा चटखने लगेगा

माँ को दुःख होगा...

क्यों न मैं ही इसे हटा दूँ अभी

इसकी बढ़ती टांगों से पहले

कल को ये घर में बदसूरती लाये

क्यों न मैं ही इसका वजूद मिटा दूँ

या इसे एक नयी ज़मी दूँ

जहाँ ये पनप सके.....जन्म ले सके

अभी ये नापसंद है माँ को

तब ये माँ का दुलार पा सके

एक हिस्सा बन जाये शायद

माँ के इस बरामदे का

खिली पत्तियाँ और रंगीन फूलों से

तब माँ को ख़ुशी होगी

और मुझे भी....

(मौलिक एव अप्रकाशित)

.......प्रियंका

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 2:13pm

आदरणीया प्रियंका जी , सच है समस्या बढ़े इस से पहले ही उपचार होना ज़रूरी है !! बहुत खूब !! बहुत बधाई !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 1:34pm

या इसे एक नयी ज़मी दूँ

जहाँ ये पनप सके.....जन्म ले सके

अभी ये नापसंद है माँ को

तब ये माँ का दुलार पा सके

एक हिस्सा बन जाये शायद

माँ के इस बरामदे का

खिली पत्तियाँ और रंगीन फूलों से

तब माँ को ख़ुशी होगी

और मुझे भी.....

बहुत सुंदर भाव...बहुत बहुत बधाई , आदरणीया प्रियंका जी

Comment by वेदिका on September 14, 2013 at 1:32pm

बढ़िया कथ्य !! शुभकामनायें !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:27pm

आदरणीया प्रियंका जी ..क्या सोच है ..आनंद आ गया ..मेरी तरफ से ढेरों बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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