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मैंने बस राख में हवा की है -अभिनव अरुण ||ग़ज़ल||

ग़ज़ल –

२१२२  १२१२  २२

तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,

माफ़ करना अगर खता  की है |

 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |

 

अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,

मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |

 

फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,

खुशबुओं की तलाश बाकी है |

 

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है |

 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है |

 

था मुझे टूटना बिखरना तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है |

* सर्वथा मौलिक अप्रकाशित .

                      - अभिनव अरुण 

                        [19092013]

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 20, 2013 at 11:58am

वाह वाह आदरणीय अरुण भाई जी वाह कमाल की ग़ज़ल है शानदार अशआर हुए हैं भाई जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 7:00am

आ. वंदना जी हार्दिक आभार आपका ग़ज़ल अनुमोदित हो सार्थक हुई !!

Comment by vandana on September 20, 2013 at 6:50am
बहुत बढ़िया गज़ल आदरणीय अरुण जी
Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:31am

 आ. एडमिन जी अभी आपको मेसेज कर रहा था नहीं हुआ फिर आपके कमेन्ट में लिखना चाह वह भी नहीं हुआ ..कोई टेक्नीकल मामला है लगता है ...

उसका टेक्स्ट ये है ..

आदरणीय एडमिन महोदय , अभिवादन , मेरे अंतिम पोस्ट  मैंने बस राख में हवा की है -अभिनव अरुण ||ग़ज़ल||  के आखिरी शेर में बिखरना की जगह भूल से ''बिखरा ' हो गया है कृपया इसे ठीक कर दिया जाए आभारी रहूँगा .

सादर ,

 -- अभिनव

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:10am

आ. Baidya Nath 'सारथी' जी परम आभार आदरणीय भावो के अनुमोदन और कीमती टिप्पणी के लिए !!

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:09am

आ. जितेन्द्र 'गीत' जी ग़ज़ल पसंद आई जानकर प्रसन्नता हुई शुक्रिया आपका ह्रदय से

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:08am

आ.annapurna bajpai जी बहुत आभार और शुक्रिया आपका !!

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:08am

हम्म्म्म ! आ. डॉ साहिब ...बिखरा गलती से था अब बिखरना एडमिन जी के हाथ है :-) आगे आगे देखिये होता है क्या ...ये इश्क नहीं आसां ... आपसे जैसे प्रबुद्ध का आशीर्वाद मिला ग़ज़ल धन्य हुई ..बहत आभार आपने समय निकाल ग़ज़ल पढ़ी और बहुमूल्य राय दी शुक्रिया !!

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:04am

आ. महिमा जी शुक्रिया बहुत बहुत इस ग़ज़ल को आपकी तारीफ ने ''ग़ज़ब ''बनाया :-) आदरणीया आभारी हूँ !!

Comment by Abhinav Arun on September 20, 2013 at 6:03am

आ. श्री बागी जी , कई बार पढ़ी थी .पर अफ़सोस देखिये गाजीपुर की नज़र बलिया जैसी तेज़ नहीं शायद ....खैर आ. एडमिन जी को पुनः खेद और आभार सहित कष्ट दे रहा हूँ कृपया आखिरी शेर में ''बिखरा ''को ' बिखरना 'कर दे कोशिश आइन्दा ध्यान देने की होगी !

और बहुत आभार आदरणीय ग़ज़ल पर स्नेह प्रदान करने के लिए !!

कृपया ध्यान दे...

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