ऐसा नही है
कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा
ऐसा नही है
कि वहां सरसराते हैं सर्प
ऐसा नही है
कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं
ऐसा नही है
कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े
ऐसा भी नही है
कि मौत के खौफ का बसेरा है
फिर क्यों
वहाँ जाने से डरते हैं हम
फिर क्यों
वहाँ की बातें भी हम नहीं करना चाहते
फिर क्यों
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम
फिर क्यों
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं हम
फिर क्यों
फिर क्यों.....
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
बेहद सशक्त रचना आदरणीय अनवर जी बधाई स्वीकारें.
फिर क्यों ? प्रश्न करती जवाब मांगती रचना (जिसके जवाब शायद गर्भ में छिपे है) के लिए हार्दिक बधाई श्री अनवर भाई
बहुत बढ़िया व् सशक्त रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय अनवर साहब
आदरणीय अनवर भाई , सुन्दर , सशक्त रचना के लिये बधाई !!
फिर क्यों
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम
फिर क्यों
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं हम
फिर क्यों
आदरणीय अनवर जी ..न जाने क्यों ....आतंक बढ़ता ही जाता है और हम कमजोर ,,बड़ा प्रश्न है ...सोचना है बदलना है
सुन्दर रचना ....बधाई
भ्रमर ५
शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
सुन्दर सशक्त रचना हार्दिक शुभकामनायें !!
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