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मस्तक राजे ताज सभी भाषा की हिन्दी
ज्ञान दायिनी कोष बड़ा समृद्ध विशाल है
संस्कृत उर्दू सभी समेटे अजब ताल है
दूजी भाषा घुलती हिंदी दिल विशाल है
लिए हजारों भाषा करती कदम ताल है
जन - मन जोड़े भौगोलिक सीमा को बांधे
पवन सरीखी परचम लहराती है हिंदी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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१ १ स्वर तो ३ ३ व्यंजन 52 अक्षर अजब व्याकरण
गिरना उठना चलना सब सिखला बैठी अन्तःमन
कभी कंठ से कभी चोंच से होंठ कभी छू आती हिन्दी
सुर की मलिका सात सुरों गा, दिल अपने बस जाती हिन्दी
उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम , दसों दिशा लहराती हिन्दी
आदिकाल से रूप अनेकों धर भाषा संग आती हिन्दी
गाँव-गाँव की जन-जन की अपनी भाषा बस जाती हिन्दी
उन्हें मनाती मित्र बनाती चिट्ठी -चिटठा लिखवाती हिन्दी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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शासन भी जागा है अब तो रोजगार दिलवाती हिन्दी
पुस्तक और परीक्षा हिन्दी साक्षात्कार करवाती हिन्दी
अभियन्ता तकनीक लिए मंगल शनि जा आती हिन्दी
शिक्षण संस्था संस्कृति अपनी दिल में पैठ बनाती हिन्दी
आँख-मिचौली सुप्रभात से बाल-ग्वाल से पुष्प सरीखी
न्यारी-प्यारी महक चली ये गली-गली है बड़ी दुलारी
नमो -नमः तो कभी नमस्ते झुके कभी नत-मस्तक होती
सिर ऊँचा कर गर्व भरी परचम अपना लहराती हिन्दी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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गुड़ से मीठी शहद भरी जिह्वा -जिह्वा बस जाती हिन्दी
मातु-कृपा है श्री भी संग में रचे विश्वकर्मा सी हिन्दी
गुरु-शिष्य हों माताश्री या पिताश्री से सीखे हिन्दी
क्रीड़ा करती उन्हें पढ़ाती विश्व-गुरु बन जाती हिन्दी
लौहपथगामिनी छुक-छुक छुक-छुक भक-भक अड्डा जाती
मेघ-दूत बन , दिल की पाती प्रियतम को पहुंचाती
प्रिय प्रियतम का तार जोड़ मन दिल के गीत गवाती हिन्दी
सखी-सहेली छवि प्यारी ले सब का नेह जुटाती हिन्दी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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इसकी महिमा न्यारी प्यारी बड़ी सुकोमल दृढ है हिन्दी
पारिजात सी कामधेनु सी मनवांछित दे जाती हिन्दी
छंद काव्य या ग्रन्थ सभी हम आओ रच डालें हिन्दी
प्रेम शान्ति हो कूटनीति या राजनीति की चिट्ठी पाती
हिंदी रस में डुबा लो प्यारे जन-कल्याण ये कर आती
आओ वीरों सभी सपूतों बेटी-बिदुषी ले के हिन्दी
साँसें हिंदी जान है हिन्दी वतन अरे ! पहचान है हिन्दी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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मान है ये सम्मान है ये, भारत माता की बिन्दी हिन्दी
अलंकार है रस-छंदों की गागर-सागर- मंथन हिन्दी
रमी प्रकृति में हमें झुलाती सावन-मनभावन सी हिन्दी
कजरी-तीज, पर्व संग सारे चोला -दामन साथ है हिन्दी
आओ रंग-विरंगे अपने पुष्प सभी हम गूंथ-गूंथ के माला एक बनायें
माँ भारति का भाल सजा के जोड़ हाथ सब नत-मस्तक हो जाएँ
माँ का लें आशीष नेक और एक बनें हम हिन्दी से जुड़ जाएँ
आओ भरें उड़ान परिन्दे सा पुलकित हो परचम हिन्दी लहरायें
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
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"मौलिक व अप्रकाशित"
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
3.15 A.M. -4.49 A.M.
22.09.2013
प्रतापगढ़
वर्तमान-कुल्लू हिमाचल
भारत
Comment
भाई सुरेन्द्र शुक्ल जी बहुत- बहुत बधाई । हिंदी की इतनी सुंदर, भावपूर्ण महिमा मेरी जानकारी में अब तक
किसी ने नहीं गाई। ......... सादर......।
आदरणीय अपनत्व का एहसास ही सजल कर देता है । आपकी इस रचना में अपनेपन की खुशबू है । सादर बधाई विशेषकर इन पंक्तियों पर -
माँ भारति का भाल सजा के जोड़ हाथ सब नत-मस्तक हो जाएँ
माँ का लें आशीष नेक और एक बनें हम हिन्दी से जुड़ जाएँ
आओ भरें उड़ान परिन्दे सा पुलकित हो परचम हिन्दी लहरायें सादर
मस्तक राजे ताज सभी भाषा की हिन्दी
ज्ञान दायिनी कोष बड़ा समृद्ध विशाल है
संस्कृत उर्दू सभी समेटे अजब ताल है
दूजी भाषा घुलती हिंदी दिल विशाल है
लिए हजारों भाषा करती कदम ताल है
जन - मन जोड़े भौगोलिक सीमा को बांधे
पवन सरीखी परचम लहराती है हिंदी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...अपनी मात्रभाषा हिंदी के सम्मान में बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना रची है आपने अति सुन्दर वाह हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय सुरेन्द भाई , मातृभाषा हिन्दी की शान मे बेहतरीन रचना के लिये हार्दिक बधाई !!
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