कुण्डलियाँ
सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ |
अब क्या आशा राम से, हो रहे स्खलित विज्ञ |
हो रहे स्खलित विज्ञ, बने खरदूषण साले |
घालमेल का खेल, बुराई कुल अपना ले |
नित आगे की होड़, रखेंगे बढ़ा ताजिया |
सिया सती की लाज, बचा ले पकड़ हाँसिया ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
बधाई आदरणीय .. वाह !
बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया छंद आदरणीय //हार्दिक बधाई आपको //सादर
प्रिय रविकर जी ..फिर अपनी विधा की एक सुन्दर कुंडली पढ़ाया आप ने ..अच्छा विच्छेदन और व्यंग्य
भ्रमर ५
सुंदर कुंडली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय रविकर जी
भाव कथ्य शिल्प सभी चमत्कृत कर रहे हैं आ, रविकर जी बहुत बहुत नमन वंदन है आपकी रचना पर !!
वाह !!! आदरणीय रविकर जी सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।
भावपक्ष एवं कला पक्ष के बेजोड् प्रस्तुति के लिये आदरणीय रविकरजी नमन सह बधाई
अद्वितीय रचना आदरणीय रविकर सर
सादर प्रणाम सहित बधाई
बेजोड़ कुण्डलिया छंद आदरणीय बहुत ही सुन्दर व्यंग कसा है आपने मजा आ गया बधाई स्वीकारें.
बेहतरीन सन्देश ! ह्रदय से बधाई
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