For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है(ग़ज़ल ) 'राज'

2 1 2 2      2 1 2 2       2 1 2 2    2

"रमल मुसम्मन महजूफ"

.

जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है

इक निवाले के सिवा अब आर्ज़ू क्या है

 

ख़ास जोरोजर समझते हैं जहाँ  खालिस

या खुदा  उनके लिए इक  आबरू क्या है

 

नफ़रतों का जो जहर यूँ बारहा पीते

अम्न क्या है और उनकी  गुफ़्तगू  क्या है

 

फितरतें ताने जनी ही है सदा जिनकी

 बाद क्या उनकी नजर में रूबरू क्या है 

 

कीमते फ़न की नजर में ही नहीं जिनकी 

गीत या उनके लिए ऐ नज्म तू क्या है 

 

जो  नहीं  रखते अक़ीदत या अदब दिल में 

वो समझते ही नहीं यारब  गुरु क्या है

 

टीसते दिल से  टपकता तो  बहुत देखा

जो न टपका सरहदों पे वो लहू क्या है 

 

लाख सागर हैं यहाँ ऐ "राज" पीने को

पर जिसे लब छू न पायें वो  सबू क्या है

**********************************

जोर ओ जर =शक्ति और धन

 फ़न =कला

बारहा =हमेशा , अनेक बार ,बहुदा

ख़ालिस =केवल

सबू =मदिरा का मटका

सागर =पैमाने

अकीदत =श्रद्धा,आस्था

अदब =तहजीब 

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

Views: 1801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 27, 2013 at 10:00am

प्रिय प्राची जी आपने सच कहा है आपने जो ग़ज़ल पढ़ी थी वो सच में रा मेटीरियल ही थी आदरणीय वीनस जी के मार्ग दर्शन से इसमें कुछ संशोधन किये हैं अब आपकी प्रतिक्रिया चाहूंगी सस्नेह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 27, 2013 at 9:58am

संशोधित करके भी डर रही थी आदरणीय वीनस जी अब आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर जान में जान आई मार्ग दर्शन के लिए दिल से शुक्रिया.इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहिये.  

Comment by vandana on September 27, 2013 at 6:27am

बहुत सुन्दर आदरणीया राजेश जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 26, 2013 at 11:46pm

नफ़रतों का जो जहर यूँ बारहा पीते

अम्न क्या है और उनकी  गुफ़्तगू  क्या है......वाह! बहुत खूब

टीसते दिल से  टपकता तो  बहुत देखा

जो न टपका सरहदों पे वो लहू क्या है......यह शेर बहुत पसंद आया

बेहतरीन गजल, दाद कुबूल कीजिये आदरणीया राजेश जी

 

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 11:35pm
वाह वा आदरणीया
आपने ग़ज़ल को एक नया मेयार बख्शा है
ढेरो दाद क़ुबूल फरमाएं

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 9:40pm

आदरणीया राजेश जी 

कहन तो बेशक बहुत उम्दा है पर मुझे भी इस लय में मिठास कम लगी  .... 

सादर शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2013 at 6:02pm

जी वीनस जी जू की बंदिश से ही मेरा भी तात्पर्य था किन्तु आपने तो इसका बहुत अच्छा निवारण सुझाया है दिल से शुक्रिया आपका इस ग़ज़ल को आपके परामर्श के अनुसार वक़्त मिलते ही एडिट करती हूँ आपने एक गुरु का फ़र्ज निभाते हुए मार्ग दर्शन किया बहुत- बहुत शुक्रिया अब निम्नलिखित शब्दों की मात्राएँ गणना के लिए प्रदत्त लिंक पर  जाती  हूँ सच बताऊँ हाल में ही एक ग़ज़ल पुस्तक पढ़ी थी जिससे ये  भ्रम पैदा हुआ और मैंने उसी तरह शब्द विच्छेद कर मात्राएँ लिख ली 

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 5:30pm

बहर को लेकर मेरा आपसे ये निवेदन था कि आप इस ग़ज़ल की बहर को २१२२ / २१२२  /१२२२ से बदल कर २१२२ / २१२२ / २१२२ / २ कर लें तो ग़ज़ल में ले कई गुना बढ़ जाएगा जिससे पढ़ने वालों को लुत्फ़ मिलेगा आपको भी ग़ज़ल पहले से अच्छी लगेगी

इसके लिए मैंने ग़ज़ल के मतला में बदलाव करके एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया था

======================================
अग्र लिखित शब्दों के लिए यह कहना है कि आपने इनको गलत वजन में बाँध लिया है

जोर ओ जर  - २१२२

कद्र-ओ- फ़न - २१२२
घुंघरू - २१२

जख्म -ए -दिल - २१२२

ये सभी मात्राएं बिलकुल गलत हैं इनके सही स्वरूप को जानने के लिए आप ये लेख देखिये इसमें विस्तार से चर्चा किया गया है .. इतने विस्तार से यहाँ बता पाना संभव नहीं है
www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:...
सादर

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 5:08pm

आदरणीया मुझे नहीं समझ आया कि आपने मतले में क्या त्रुटि देख ली है

मैं अपनी बात को और विस्तार से कहता हूँ तो स्पष्ट हो जाएगा
काफिया में आरजू जुस्तजू लिखने पर हमें हिदी के अनुसार आगे के हर्फे कवाफी में जू की बंदिश लेनी होगी जो आपने नहीं ली है और इस अनुसार आपको मतला के कवाफी को बदलना होगा जिससे आगे के अशआर में उपयोग हुए कवाफी सही हो जाएँ
मगर आपने जिस तरह उर्दू व्याकरण में उपयोग होने वाले वाव अत्फ और इज़ाफत का इस्तेमाल किया है इसे हिन्दी ग़ज़ल कहना सही नहीं होगा अब देखें कि क्या उर्दू के अनुसार इस ग़ज़ल के कवाफी सही हैं ?

जुस्तजू में ज जीम है जिसमें नुक्ता नहीं होता आरज़ू में ज ज़े है जिसमें नुक्ता होता है इस अनुसार आपके मतला के कवाफी में उपयोग हुए ज और ज़ दो अलग अलग हर्फ़ हैं और इस कारण हमें छूट मिलती है कि हम आगे के अशआर में केवल ऊ स्वर को निभाए और आपने यही किया है, उर्दू के अनुसार आपके काफिया बंदिश में कोई दोष नहीं है मगर ये बात उर्दू न जानने वालों को स्पष्ट हो सके इसलिए किये जरूरी है कि और के अंतर को स्पष्ट किया जा सके और इसके लिए आपको इतना भर करना है कि मलता में आरजू को हटा कर आर्ज़ू लिख दीजिए

बस मैंने यही कहने का प्रयास किया था

Comment by Abhinav Arun on September 26, 2013 at 2:31pm

सदा स्वागत आदरणीया आपसे सहमत हूँ ! सादर अभिवादन !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service