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कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें

कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें

इस गुबारे-गर्द में सहरों की बातें क्या करें

 

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें

 

इस कदर मसरूफ हैं पाने को नाम औ शोहरतें

वक़्त इक पल का नहीं पहरों की बातें क्या करें

 

तुक मिलाने को समझ बैठा जो शाइर शाईरी

नासमझ से वजन औ बहरों की बातें क्या करें

 

नफरतें हैं वहशतें हैं दहशतें हैं राह में

हर घडी है गमजदा कहरों की बातें क्या करें

 

आँख का पानी हवा में उड़ गया है “दीप” तब

बैठ बंजर खेत में नहरों की बातें क्या करें

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by annapurna bajpai on September 28, 2013 at 12:12am

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें

 

सुंदर पंक्तियाँ बहुत बधाई आपको । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 27, 2013 at 10:20pm

विराना हो चूका है अब तो ये सारा जहाँ !

हम उजड़े शहरों की बाते क्या करें !

पर्दा नही है जिसको किसी गैर का !

उस शख्स से हम मुलाकाते क्या करें !                    

मेरी तरफ से एक शेर आपकी गज़ल के लिए !            बहुत ही सुन्दर रचना है ! दिली बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2013 at 9:56pm

//हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें// बहुत बढ़िया आदरणीय  संदीपजी बहुत खूबसुरत शेर हुआ है 

आपकी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें 

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 9:52pm

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें//वाह  क्या कहने भाई। बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको 

 

Comment by hemant sharma on September 27, 2013 at 9:16pm

बहुत हि सुन्दर गजल बधाई स्वीकारें सन्दीप जी.....

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2013 at 8:57pm

वाह !!! सन्दीप भी , बेहतरीन गज़ल कही भाई , दिली मुबारक़बाद क़ूबूल हो !!

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें ------- लाजवाब बात कही !! बधाई

Comment by Saarthi Baidyanath on September 27, 2013 at 8:22pm

जी ..श्री संदीप कुमार पटेल साहब ..., आदरणीय चंद्रशेखर साहब से सहमत हूँ ..! ये वाकई दमदार है ..

तुक मिलाने को समझ बैठा जो शाइर शाईरी

नासमझ से वजन औ बहरों की बातें क्या करें... खूब :)

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 27, 2013 at 6:59pm

तुक मिलाने को समझ बैठा जो शाइर शाईरी

नासमझ से वजन औ बहरों की बातें क्या करें

 वाह्ह कमाल की ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद, आदरणीय संदीप जी। यह शेर इस ग़ज़ल का हासिल है। बधाईयां।

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