For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये नज़र किससे मेरी टकरा गई

ये नज़र किससे मेरी टकरा गई

पल में दिल को बारहा धडका गई

 

एक टक उसको लगे हम ताकने

शर्म थी आँखों में हमको भा गई

लब गुलाबों से बदन था संदली

खुशबू जिसकी दिल जिगर महका गई

 

कैद है या खूबसूरत ख्वाब-गाह 

गेसुओं में इस कदर उलझा गई

 

पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह

जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई

 

“दीप” जो बुझने लगा था इश्क का 

मुस्कुरा के उसको वो भड़का गई

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2013 at 8:17pm

प्रिय संदीप जी प्रेम में पगी इस ग़ज़ल के लिए दिली बधाई

एक इस्स्लाह --- 

पल में दिल को बारहा धडका गई-----पल में के साथ बारहा ठीक नहीं ,पल में दिल को इस कदर धड़का गई -----बाकी सभी शेर माशाल्लाह क्या कहने  

 

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 2, 2013 at 7:25pm

एक टक उसको लगे हम ताकने

शर्म थी आँखों में हमको भा गई

बहुत ही सुंदर पटेल जी बधाई बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 5:13pm

क्या बात है भाई, वाह अच्छी ग़ज़ल हुई है । बधाई । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 2, 2013 at 9:32am

बहुत बढ़िया गजल,हार्दिक बधाई आदरणीय संदीप जी

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 6:55am

वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! सभी अशआर खूबसूरत हैं! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:03am

गज़ल अच्छी लगी... बधाई, संदीप  जी

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 11:04pm

वाह भाई वाह प्रेम पगी ग़ज़ल अत्यंत खूबसूरत अशआर जोरदार भाई जी दिली दाद तो बनती है स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 10:53pm

आदरणीय सन्दीप भाई , प्रेयसी की सुन्दरता का सुन्दर वर्णन , भई वाह !! बहुत बधाई !!

Comment by D P Mathur on October 1, 2013 at 9:45pm

आदरणीय संदीप जी, सुन्दर गजल के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 9:02pm

वाब भाई क्या कहने ,,,

लवेरिया युक्त ग़ज़ल के क्या कहने :))))))))))))))))))))))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service