ये नज़र किससे मेरी टकरा गई
पल में दिल को बारहा धडका गई
एक टक उसको लगे हम ताकने
शर्म थी आँखों में हमको भा गई
लब गुलाबों से बदन था संदली
खुशबू जिसकी दिल जिगर महका गई
कैद है या खूबसूरत ख्वाब-गाह
गेसुओं में इस कदर उलझा गई
पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह
जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई
“दीप” जो बुझने लगा था इश्क का
मुस्कुरा के उसको वो भड़का गई
संदीप पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
प्रिय संदीप जी प्रेम में पगी इस ग़ज़ल के लिए दिली बधाई
एक इस्स्लाह ---
पल में दिल को बारहा धडका गई-----पल में के साथ बारहा ठीक नहीं ,पल में दिल को इस कदर धड़का गई -----बाकी सभी शेर माशाल्लाह क्या कहने
एक टक उसको लगे हम ताकने
शर्म थी आँखों में हमको भा गई
बहुत ही सुंदर पटेल जी बधाई बधाई
क्या बात है भाई, वाह अच्छी ग़ज़ल हुई है । बधाई ।
बहुत बढ़िया गजल,हार्दिक बधाई आदरणीय संदीप जी
वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! सभी अशआर खूबसूरत हैं! आपको हार्दिक बधाई!
गज़ल अच्छी लगी... बधाई, संदीप जी
वाह भाई वाह प्रेम पगी ग़ज़ल अत्यंत खूबसूरत अशआर जोरदार भाई जी दिली दाद तो बनती है स्वीकारें.
आदरणीय सन्दीप भाई , प्रेयसी की सुन्दरता का सुन्दर वर्णन , भई वाह !! बहुत बधाई !!
आदरणीय संदीप जी, सुन्दर गजल के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
वाब भाई क्या कहने ,,,
लवेरिया युक्त ग़ज़ल के क्या कहने :))))))))))))))))))))))
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