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समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी

1  2 2 1   2 2 1 2   2 1 2 2

समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी

उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी

बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी
किसी काम की अब नहीं है जवानी

ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी

नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी

अमित दुबे अंश  मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 3:25am

बढिया प्रयास हुआ है, भाईजी.. बधाई

Comment by अमित वागर्थ on October 2, 2013 at 6:26pm

veenas ji

            maine bina bahar soche hi ghazal likh dali baad me use vibhajit kiya so chuk ho gai .margdarshan hetu aapka tahedil se shukriya..

Comment by अमित वागर्थ on October 2, 2013 at 6:23pm

aap sabhi sudhijanon ko mera hardik aabhar

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 10:41pm

बहुत खूब भाई जी बेहद शानदार ग़ज़ल कही है तहे दिल से ढेरो डैड क़ुबूल फरमाएं

एक बात कहना चाहत हूँ कि आपने बहर को जिस तरह से तोड़ किया है वो गलत है

1  2 2 1   2 2 1 2   2 1 2 2
यह मात्र क्रम इस प्रकार टूटती है - १२२  १२२   १२२  १२२ 
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 4:21pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आ० अमित दूबे जी 

उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में 
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी ............बहुत सुन्दर शेर 

तीसरे और चौथे शेर में तकाबुले रदीफ़ का ऐब बन रहा है.. गौर कीजिये 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 1, 2013 at 2:36pm

वाह वाह आदरणीय अमित जी वाह

सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद क़ुबूल कीजिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 1:31pm

अमित भाई ग़ज़ल पर आपका प्रयास बहुत ही अच्छा बन पड़ा है इस हेतु बधाई स्वीकारें. शेर न. 3 और 4 में तदाबुले रदीफ़ का दोष है.

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 1:03pm
खूबसूरत गजल ,बधाई भाई अमितजी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 9:48am

बहुत बढ़िया गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय अमित जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 30, 2013 at 7:51pm

अमित दुबे जी बधाई अच्छी  गज़ल की , ।

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