1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी
उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी
बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी
किसी काम की अब नहीं है जवानी
ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी
नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी
अमित दुबे अंश मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बढिया प्रयास हुआ है, भाईजी.. बधाई
veenas ji
maine bina bahar soche hi ghazal likh dali baad me use vibhajit kiya so chuk ho gai .margdarshan hetu aapka tahedil se shukriya..
aap sabhi sudhijanon ko mera hardik aabhar
बहुत खूब भाई जी बेहद शानदार ग़ज़ल कही है तहे दिल से ढेरो डैड क़ुबूल फरमाएं
एक बात कहना चाहत हूँ कि आपने बहर को जिस तरह से तोड़ किया है वो गलत है
1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
यह मात्र क्रम इस प्रकार टूटती है - १२२ १२२ १२२ १२२
सादर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल आ० अमित दूबे जी
उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी ............बहुत सुन्दर शेर
तीसरे और चौथे शेर में तकाबुले रदीफ़ का ऐब बन रहा है.. गौर कीजिये
हार्दिक शुभकामनाएं
वाह वाह आदरणीय अमित जी वाह
सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद क़ुबूल कीजिये
अमित भाई ग़ज़ल पर आपका प्रयास बहुत ही अच्छा बन पड़ा है इस हेतु बधाई स्वीकारें. शेर न. 3 और 4 में तदाबुले रदीफ़ का दोष है.
बहुत बढ़िया गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय अमित जी
अमित दुबे जी बधाई अच्छी गज़ल की , ।
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