For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा -५ प्रेम पीयूष

सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१

प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२

प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३

रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४

अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को भूल॥५

मुझसे कहने आ गयी ,अपने दिल की बात !
लिए चाँदनी साथ में ,तारों की बारात !!६

उनके आते ही यहाँ,उड़ने लगी सुगंध !
धीरे धीरे टूटते, मर्यादा के बन्ध।!७

व्यथित ह्रदय अब ढूंढता,वही पत्र दो चार !
जिसमे तुमने था लिखा,तुमको मुझसे प्यार !!८

साँसों में मधु रागिनी, अधरों पर शुभ गीत।
मधुर कंठ की स्वामिनी, बना रही मन मीत॥९

************************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1066

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत नेमा on October 1, 2013 at 11:42am

आ0 राम भाई जी सुन्दर दोहे अति सुन्दर ..... बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 9:53am

अति उत्तम, अनुपम दोहावली, बहुत बहुत बधाई राम भाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2013 at 8:47am

शृंगार की आधार-पीठिका पर अनंग-देव को साग्रह प्रतिस्थापित करने का मनोहारी प्रयास हुआ है. देव विराजे भी हैं. अर्घ्य-जल एकसार संसृत भी हुआ है. शिष्ट-निवेदन को शब्द-पुष्पों का कमनीय सौष्ठव अनुमन्य भी बना रहा है. पुष्पित कलियों का मकरन्द-सौंदर्य उछाह पर तो है ही, निखार पर भी है. चन्दन व्यापा है. धमनियाँ तरंगित हुई हैं. सम्यक ! सम्यक ! किन्तु..  

किन्तु, वातावरण को, काश, कुछ और एकांगी बनाया गया होता ! शब्द-स्वर के विस्तार को कुछ और अनुशासित किया गया होता. अर्पण को शब्दों का आग्रह मान तो देता है, प्रभाव नहीं दे पा रहा. जोकि, सतत संलग्नता का उपासक हुआ करता है.
और, प्रभाव को मनोनुकूल संतुष्टि न मिल सकी, तो निवेदन अभिव्यक्ति का प्रारूप अवश्य होता दिखेगा, समर्पण की सात्विकता न दिखेगी. 

गहनता संप्रेषण में तार्किक संबल चाहती है जो अध्ययन पश्चात मनन-मंथन का प्रतिफल हुआ करता है. फिरभी, प्रयासरत होना शुभ-संकेत है.
शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 8:07am

आदरणीय राम भाई , आज आपके दोहो से पुलकित भी हूँ , और अचम्भित भी , वाह भाई वाह क्या बात है !! आपको हार्दिक बधाई !!

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 9:57pm

हार्दिक  आभार आदरणीय भाई ब्रिजेश  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 9:56pm

हार्दिक  आभार आदरणीया महिमा जी //सादर 

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 9:51pm

 वाह ! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2013 at 9:33pm

मुझसे कहने आ गयी ,अपने दिल की बात !
लिए चाँदनी साथ में ,तारों की बारात !!६

उनके आते ही यहाँ,उड़ने लगी सुगंध !
धीरे धीरे टूटते, मर्यादा के बन्ध।!७

व्यथित ह्रदय अब ढूंढता,वही पत्र दो चार !
जिसमे तुमने था लिखा,तुमको मुझसे प्यार !!८

साँसों में मधु रागिनी, अधरों पर शुभ गीत।
मधुर कंठ की स्वामिनी, बना रही मन मीत ......क्या बात है भाई रामश्रीरोमणि जी आप तो छा गए :)))))  बहुत बहुत सुंदर दोहावली ... काश मैं भी कभी ऐसी प्यारी सी छंद लिखू ..

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 9:06pm

हार्दिक  आभार आदरणीय  संजय मिश्र जी  //सादर 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on September 30, 2013 at 9:02pm

भाई रामशिरोमणि जी बहुत सुन्दर मोहक दोहे रचे आपने...

बहुत बधाई स्वीकारें....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service