सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१
प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२
प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३
रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४
अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को भूल॥५
मुझसे कहने आ गयी ,अपने दिल की बात !
लिए चाँदनी साथ में ,तारों की बारात !!६
उनके आते ही यहाँ,उड़ने लगी सुगंध !
धीरे धीरे टूटते, मर्यादा के बन्ध।!७
व्यथित ह्रदय अब ढूंढता,वही पत्र दो चार !
जिसमे तुमने था लिखा,तुमको मुझसे प्यार !!८
साँसों में मधु रागिनी, अधरों पर शुभ गीत।
मधुर कंठ की स्वामिनी, बना रही मन मीत॥९
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ0 राम भाई जी सुन्दर दोहे अति सुन्दर ..... बधाई
अति उत्तम, अनुपम दोहावली, बहुत बहुत बधाई राम भाई
शृंगार की आधार-पीठिका पर अनंग-देव को साग्रह प्रतिस्थापित करने का मनोहारी प्रयास हुआ है. देव विराजे भी हैं. अर्घ्य-जल एकसार संसृत भी हुआ है. शिष्ट-निवेदन को शब्द-पुष्पों का कमनीय सौष्ठव अनुमन्य भी बना रहा है. पुष्पित कलियों का मकरन्द-सौंदर्य उछाह पर तो है ही, निखार पर भी है. चन्दन व्यापा है. धमनियाँ तरंगित हुई हैं. सम्यक ! सम्यक ! किन्तु..
किन्तु, वातावरण को, काश, कुछ और एकांगी बनाया गया होता ! शब्द-स्वर के विस्तार को कुछ और अनुशासित किया गया होता. अर्पण को शब्दों का आग्रह मान तो देता है, प्रभाव नहीं दे पा रहा. जोकि, सतत संलग्नता का उपासक हुआ करता है.
और, प्रभाव को मनोनुकूल संतुष्टि न मिल सकी, तो निवेदन अभिव्यक्ति का प्रारूप अवश्य होता दिखेगा, समर्पण की सात्विकता न दिखेगी.
गहनता संप्रेषण में तार्किक संबल चाहती है जो अध्ययन पश्चात मनन-मंथन का प्रतिफल हुआ करता है. फिरभी, प्रयासरत होना शुभ-संकेत है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय राम भाई , आज आपके दोहो से पुलकित भी हूँ , और अचम्भित भी , वाह भाई वाह क्या बात है !! आपको हार्दिक बधाई !!
हार्दिक आभार आदरणीय भाई ब्रिजेश जी //सादर
हार्दिक आभार आदरणीया महिमा जी //सादर
वाह ! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
मुझसे कहने आ गयी ,अपने दिल की बात !
लिए चाँदनी साथ में ,तारों की बारात !!६
उनके आते ही यहाँ,उड़ने लगी सुगंध !
धीरे धीरे टूटते, मर्यादा के बन्ध।!७
व्यथित ह्रदय अब ढूंढता,वही पत्र दो चार !
जिसमे तुमने था लिखा,तुमको मुझसे प्यार !!८
साँसों में मधु रागिनी, अधरों पर शुभ गीत।
मधुर कंठ की स्वामिनी, बना रही मन मीत ......क्या बात है भाई रामश्रीरोमणि जी आप तो छा गए :))))) बहुत बहुत सुंदर दोहावली ... काश मैं भी कभी ऐसी प्यारी सी छंद लिखू ..
हार्दिक आभार आदरणीय संजय मिश्र जी //सादर
भाई रामशिरोमणि जी बहुत सुन्दर मोहक दोहे रचे आपने...
बहुत बधाई स्वीकारें....
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