छंदों की फुहार हैं भीगे अशआर हैं
कहे कलम क्या; सृजन करूँ ?
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
जो नित नए रंग बदलते हों
पल पल में साथ बदलते हों
नूतन परिधानों की मानिंद
हर दिन नव हाथ बदलते हों
उन अपनों को क्या लिखूँ?
रकीब लिखूँ या कि मीत लिखूँ
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
यहाँ मजनू भी हैं लैला भी
और शीरी भी फरहाद भी
यहाँ फिरते दिल बिखरे-बिखरे
सुन रहे हैं प्रेम जिहाद भी
इस चाहत को क्या लिखूँ?
मैं इश्क लिखूँ या प्रीत लिखूँ
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
ये धर्म के बीच खड़ी होती
कभी दिलों बीच अड़ी होती
और कभी बनाती ताज महल
कभी बगड़ बीच खड़ी होती
इस वितरक को क्या लिखूँ
दीवार लिखूँ या भीत लिखूँ
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
कहीं मैदान कहीं पहाड़ हैं
और फूलों भरी कतार हैं
कहीं कहीं ठिठुरते हैं पीपल
कहीं बर्फ ढके चिनार हैं
इस मौसम को क्या लिखूँ?
ऋतु शरद लिखूँ या शीत लिखूँ
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
कुछ पाया भी कभी खोया भी
कुछ काटा भी कुछ बोया भी
कभी खुशियों से दमका मुखड़ा
कभी अश्रुओं से धोया भी
इस जीवन को क्या लिखूँ?
निज हार लिखूँ या जीत लिखूँ
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ?
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अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय गिरिराज जी गीत पर आपकी सराहना पढ़ कर अच्छा लगा आपको पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ ह्रदय तल से आभार आपका|
आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत सुन्दर प्रस्तुति है , आदरणीया अंतिम बन्द बहुत ही अच्छा लगा !! बहुत बधाई !!
कुछ पाया भी कभी खोया भी
कुछ काटा भी कुछ बोया भी
कभी खुशियों से दमका मुखड़ा
कभी अश्रुओं से धोया भी
इस जीवन को क्या लिखूँ?
निज हार लिखूँ या जीत लिखूँ
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ ? .........वाह वाह !!!!
प्रिय राम शिरोमणि जी आपको गीत पसंद आया दिल से आभार आपका|
बहुत सुन्दर गीत आदरणीया राजेश कुमारी जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर
प्रिय सखी आपको ये गीत पसंद आया हृदय से आभारी हूँ
waah bahut sundar sakhi , kya git likha hai sundar anand aa gaya , sundar bhav abhivyakti hai badhai aapko
हाँ प्रिय संदीप जी इसकी संरचना गीत से कुछ अलग ही है अंतरे के अंत में क्या लिखूं में सिर्फ क्या को खींचकर और लिखूं के साथ निम्न पंक्ति को तुरंत जोड़कर गाइए तो आपको ये सधा हुआ लगेगा ये कई बार गाकर ही लिखा है ,आपको इसके भाव पसंद आये पढ़कर अच्छा लगा ,देखते हैं विद्वद जनो की क्या राय होगी|शुभ शुभ
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
यह गीत कुछ नयापन लिए हुए है
मुखड़े में भी मात्राओं का क्रम थोडा साधारण गीत से भिन्न लगता है
फिर हर अंतरे में मात्राएँ मुक्तक की तरह साधी गयीं हैं
फिर भी मुखड़े का प्रथम चरण .............क्या लिखूं
की वजह से गहरा अटकाव बन रहा है
इसे गाने के लिए लय मिलाने के लिए इस क्या लिखूं को बहुत खींचना सा पड़ रहा है
भाव पक्ष शानदार है जैसा की आपकी रचनाओं में हमेशा देखने मिलता है
किन्तु गीत की दृष्टि से अटकाव आ रहा है जो थोड़ा व्यथित करता है
इसमें गुरुजनों की राय का इंतज़ार करूँगा
इस सुन्दर और गहन भावों से भरी रचना हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीया
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