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ये नज़र किससे मेरी टकरा गई

ये नज़र किससे मेरी टकरा गई

पल में दिल को बारहा धडका गई

 

एक टक उसको लगे हम ताकने

शर्म थी आँखों में हमको भा गई

लब गुलाबों से बदन था संदली

खुशबू जिसकी दिल जिगर महका गई

 

कैद है या खूबसूरत ख्वाब-गाह 

गेसुओं में इस कदर उलझा गई

 

पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह

जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई

 

“दीप” जो बुझने लगा था इश्क का 

मुस्कुरा के उसको वो भड़का गई

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

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Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 8:37pm

पग जहाँ उसने रखे थे उस जगह

जर्रे जर्रे पे जवानी आ गई//////

वाह वाह क्या कहने भाई ,आनंद आ गया //हार्दिक बधाई आपको //सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 6:54pm

आ० संदीप जी 

बहुत कोमल भावनाओं को संजोती खूबसूरत ग़ज़ल कही है \

हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2013 at 6:28pm

वाह आदरणीय संदीप जी खूबसूरत ग़जल कही है दिली दाद कुबूल करें 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 1, 2013 at 5:57pm

बधाई संदीप पटेल जी।  ' है ' का उपयोग करते तो और बेहतर होता।

ये नज़र किससे मेरी टकरा गई  //                           ये नज़र किससे मेरी टकरा गई है 

पल में दिल को बारहा धडका गई //                          पल में ही दिल को जो धडका गई है     

 

 

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