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सेमीनार में “कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न” विषय पर अपना भाषण देकर जब प्रिंसीपल साहिब स्टेज से उतरे तो सभी ओर तालियों की गड़गड़ाहट व वाहवाही गूंज रही थी,  सभी लोग बारी-बारी प्रिंसीपल साहिब को बधाईयां दे रहे थे। इसी क्रम में जब एक जूनियर अध्यापिका ने प्रिंसीपल साहिब को बधाई दी तो उन्हे लगा जैसे किसी ने सरे-बाजार उन्हे नंगा कर दिया हो।

- मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by रविकर on October 3, 2013 at 7:26pm

मन माने कैसे भला, भूले कब करतूत |
मनमाने व्यवहार को, भूल सके ना भूत ||

आभार आदरणीय-
सब कुछ कह दिया चन्द शब्दों में-

Comment by D P Mathur on October 3, 2013 at 7:12pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपने तो मात्र सारांश लिखकर ही पुरी कहानी समझा दी, आपको अनेकों बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2013 at 6:05pm

आदरणीय रवि भाई , तीन ही लाइन मे आपने बहुत कुछ कह दिया , और जो नही लिखा वो भी साफ समझ आ रही है !! बहुत बधाई !!

!!!! देखत मे छोटे लगे , घाव करे गम्भीर !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 3, 2013 at 5:22pm

बेहतरीन व्यंग ! बहुत खूब 

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