स्वच्छ गगन मे
सुवर्ण सी धूप
भोर की किरण ने
आ जगाया ।
अर्ध उन्मीलित नेत्र
उनींदा मानस
आलस्य पूरित
यह तन मन
पंछियों ने राग सुनाया ।
कामिनी सी कमनीय
सौंदर्य की प्रतिमा
नैसर्गिक छटा
फैली चहुं ओर
मुसकाते सुमन
झूमते तरुवर
नव जोश जगाया ।
हुआ प्रफुल्लित ये मन
तोड़ कर मंथर बंधन
मानो रोली कुमकुम
आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय अरुण शर्मा जी , आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी का इंतजार मुझे अपनी हर रचना पर रहता है , आपकी टिप्पणी मार्ग प्रशस्त करती है । आपका हार्दिक आभार ।
सादर
आदरणीय संजय मिश्रा जी आपने भी बड़ी ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ उत्साह वर्धन किया है आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय बृजेश जी आपकी टिप्पणी ने उत्साह दूना कर दिया ,अपना स्नेह टिप्पणी रूप मे बनाए रखें ।
आदरणीय सुशील जोशी जी आपका हृदय तल से आभार ।
अदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी प्रकृति की सुन्दरता का खूबसूरत चित्रण किया है आपने, इस सुन्दर रचना पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.
प्रकृति सुषमा की सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें आदरणीया, इस प्रयास पर.
सादर
//जाग रहा अंबर में सूरज, किरणें करतीं शोर।
कैसा मोहक चित्र खींचकर, मुस्काता है भोर॥//
सुंदर रचना हेतु सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी...
प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया है आपने. आपको हार्दिक बधाई!
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