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स्वच्छ गगन मे - कविता

स्वच्छ गगन मे

सुवर्ण सी धूप

भोर की किरण ने

आ जगाया ।

अर्ध उन्मीलित नेत्र

उनींदा  मानस

आलस्य पूरित

यह तन मन

पंछियों ने राग सुनाया ।  

कामिनी सी कमनीय

सौंदर्य की प्रतिमा

नैसर्गिक छटा

फैली चहुं ओर

मुसकाते सुमन

झूमते  तरुवर

नव जोश जगाया ।

हुआ प्रफुल्लित ये मन

तोड़ कर मंथर बंधन

मानो  रोली कुमकुम

आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

 

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Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 2:07pm

आदरणीय अरुण शर्मा जी , आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 2:06pm

आदरणीय सौरभ जी आपकी टिप्पणी का इंतजार मुझे अपनी हर रचना पर रहता है , आपकी टिप्पणी मार्ग प्रशस्त करती है । आपका हार्दिक आभार ।

सादर 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 2:00pm

आदरणीय संजय मिश्रा जी आपने भी बड़ी ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ उत्साह वर्धन किया है आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 1:59pm

आदरणीय बृजेश जी आपकी टिप्पणी ने उत्साह दूना कर दिया ,अपना स्नेह टिप्पणी रूप मे बनाए रखें । 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 1:57pm

आदरणीय सुशील जोशी जी आपका हृदय तल से आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 1:56pm

अदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 4, 2013 at 12:10pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी प्रकृति की सुन्दरता का खूबसूरत चित्रण किया है आपने, इस सुन्दर रचना पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2013 at 10:35am

प्रकृति सुषमा की सुन्दर अभिव्यक्ति.  बधाई स्वीकारें आदरणीया, इस प्रयास पर.

सादर

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 4, 2013 at 9:58am

//जाग रहा अंबर में सूरज, किरणें करतीं शोर। 

कैसा मोहक चित्र खींचकर, मुस्काता है भोर॥//

सुंदर रचना हेतु सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी...

Comment by बृजेश नीरज on October 4, 2013 at 9:02am

प्रकृति का सुन्दर चित्रण किया है आपने. आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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