For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ !! ( लघु कविता )

माँ !!

 

नेह ममता

लाड़  दुलार

अविस्मरण रूप

स्नेह की गागर

छलकाती ।

 

आँखों मे असंख्य

अबूझ स्वप्न

स्नेह सिक्त

जल धारा बरसाती ।

होती ऐसी माँ !!!..................अन्नपूर्णा बाजपेई 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 792

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 5, 2013 at 7:40pm

माँ को समर्पित सुन्दर कविता! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:54am

नेह ममता

लाड़  दुलार

अविस्मरण रूप

स्नेह की गागर

छलकाती ।.......बहुत सुंदर,

सच! माँ से बढकर कोई नही, बहुत बहुत बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 12:45am

ऐसी ही होती है माँ, सुंदर अभिव्यक्ति.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 12:04am

सुन्दर और सात्विक कविता के लिए बधाई

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 10:13pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:39pm

वाह.... कितनी कम पंक्तियों में माँ के स्वरूप को उजागर कर दिया आपने.... बधाई हो आदरणीया अन्नपूर्णा जी....

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 9:17pm

आदरणीय अनुराग जी बिलकुल सही कहा अपने माँ तेरे बिन मुझको अब कौन संभाले !!! आपकाहार्दिक आभार । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 8:02pm

माँ है तेरे रूप निराले , फिर आँचल की छाँव में सुलाले! अंधेरो में धकेलती ये दुनिया! तेरे बिना मुझे कौन संभाले ! हार्दिक बधाई !  

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 6:51pm

आ0 मीना जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 6:51pm

आदरणीय बागी जी आपका हार्दिक आभार , आपकी टिप्पणी से मन प्रसन्न हो गया ।

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service